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________________ प्रतिष्ठा पूजाञ्जलि n 167 विशेष स्तुति ( त्रिभंगी ) जय जय अरहंता सिद्ध महंता, आचारज उवझाय वरं, जय साधु महानं सम्यग्ज्ञानं सम्यक् चारित्र पालकरं । हैं मंगलकारी भवहरतारी पापप्रहारी पूज्यवरं, दीनन निस्तारन सुख विस्तारन करुणाधारी ज्ञानवरं । । १ । । हम अवसर पाए पूज रचाए करी प्रतिष्ठा बिम्ब महा, बहुपुण्य उपाए पाप धुवाए सुख उपजाए सार महा । जिनगुण कथ पाए भाव बढ़ाए दोष हटाये यश लीना, तन सफल कराया आत्म लखाया दुर्गतिकारण हर लीना ।।२।। निज मति अनुसारं बल अनुसारं यज्ञ विधान बनाया है, सब भूल चूक प्रभु क्षमा करो अब यह अरदास सुनाया है । हम दास तिहारे नाम लेत हैं इतना भाव बढाया है, सच याही से सब काज पूर्ण हों यह श्रद्धान जमाया है | |३|| तुम गुण का चिन्तन होय निरन्तर जावत मोक्ष न पद पावें, तुमरी पदपूजा करें निरन्तर जावत उच्च न हो जावें । हम पढ़न तत्त्व अभ्यास रहे नित जावत बोध न सर्व लहें, शुभसामायिक अर ध्यान आत्म का करत रहें निजतत्त्व गहें ||४|| जय जय तीर्थंकर गुणरत्नाकर सम्यक्ज्ञान दिवाकर हो, जय जय गणपूरण गुणचूरण संशयतिमिर हरणकर हो । जय जय भवसागर तारणकारण तुम ही भवि आलम्बन हो, - जय जय कृतकृत्यं नमें तुम्हें नित तुम सब संकट टारन हो।।।। U
SR No.009468
Book TitlePratishtha Pujanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Shastri
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year2012
Total Pages240
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, M000, & M005
File Size1 MB
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