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________________ 148 n केवलज्ञानकल्याणक पूजन ( गीता ) चौबीस जिनवर तीर्थकारी, ज्ञानकल्याणकधरं । महिमा अपार प्रकाश जगमें, मोहमिथ्यातमहरं ।। प्रतिष्ठा पूजाञ्जलि की बहुत भविजीव सुखिया, दुःखसागरउद्धरं । तिनकी चरण पूजा करें, तिन सम बने यह रुचि धरं ।। ॐ ह्रीं श्रीवृषभादिमहावीरपर्यन्तचतुर्विशंतिजिनेन्द्राः ज्ञानकल्याणकप्राप्ताः अत्र अवतरत अवतरत संवौषट् आह्वाननम् । ॐ ह्रीं श्रीवृषभादिमहावीरपर्यन्तचतुर्विशंतिजिनेन्द्राः ज्ञानकल्याणकप्राप्ताः अत्र तिष्ठत तिष्ठत ठः ठः स्थापनम् । ॐ ह्रीं श्रीवृषभादिमहावीरपर्यन्तचतुर्विशंतिजिनेन्द्राः ज्ञानकल्याणकप्राप्ताः अत्र मम सन्निहितो भवत भवत वषट् सन्निधिकरणम् । ( चामर ) नीर लाय शीतलं महान मिष्टता धरे, गन्ध शुद्ध मेलि के पवित्र झारिका भरे । " नाथ चौबिसों महान वर्तमान काल के बोध उत्सवं करूं प्रमाद सर्व टाल के ॥ ॐ ह्रीं श्रीवृषभादिमहावीरपर्यन्तचतुर्विंशतिजिनेन्द्रेभ्यः जन्म-जरा-मृत्यु - विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा । श्वेत चन्दनं सुगन्धयुक्त सार लायके, पात्र में धराय शांति कारणे चढ़ाय के । " नाथ चौबिसों महान वर्तमान काल के बोध उत्सवं करूं प्रमाद सर्व टाल के ॥ ॐ ह्रीं श्रीवृषभादिमहावीरपर्यन्तचतुर्विंशतिजिनेन्द्रेभ्यः संसारतापविनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा । u
SR No.009468
Book TitlePratishtha Pujanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Shastri
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year2012
Total Pages240
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, M000, & M005
File Size1 MB
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