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________________ प्रतिष्ठा पूजाञ्जलि 147 n ज्ञानकल्याणक स्तुति (त्रोटक) जय केवलज्ञान-प्रकाशधरं । ज्ञानावरणीय विनाश करें। जय केवलदर्शन-नायक हो । दर्शन-आवरणी घायक हो।।१।। जय वीर्य अनंत प्रकाशक हो । जय अंतराय अघनाशक हो। तुम मोह बली क्षयकारक हो। क्षायिक समकित के धारक हो।।२।। क्षायिक चारित्र विशाल धरं । आनन्द अनन्त प्रकाश धरं । जग मांहि अपूरव सूरज हो । विकसन भवि जीवन नीरज हो ।।३।। मिथ्यात्व महा तम टालन हो। शिवमग उत्तम दरशावन हो। तुम तारण-तरण तरंड वरं। सुखकारण रत्नकरण्डवरं ।।४।। (मुक्तादान) नमोस्तु नमोस्तु नमोस्तु मुनीश, परम तप के करतार रिषीश । न मोह न मान न क्रोध न लोभ, न हास्य न खेद न द्रोह न क्षोभ ।।१।। ममत्व न राग पदारथ सर्व, चिदातम वेदत छांड़त गर्व । सुभेदविज्ञान जगो चित बीच, सु आतम अनुभव लावत खींच ।।२।। स्वतत्त्व रमन्त करत निज काज, कषाय रिपु दलने को आज । लियो सत ध्यान मई अति सार, नमूं तुम को जिन कर्म निवार ।।३।।
SR No.009468
Book TitlePratishtha Pujanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Shastri
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year2012
Total Pages240
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, M000, & M005
File Size1 MB
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