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________________ प्रतिष्ठा पूजाञ्जलि 131 जन्मकल्याणक पूजन (शङ्कर ) जिननाथ चौबिस चरण पूजा करत हम उमगाय, जग जन्म लेके जग उधारो जजै हम चित लाय ।। तिन जन्मकल्याणक सु उत्सव इन्द्र आय सुकीन, हम हूँ समरता समय को पूजत हिये शुचि कीन ।। ॐ ह्रीं श्रीऋषभादिमहावीरपर्यन्तचतुर्विंशतितीर्थंकरा: जन्मकल्याणकप्राप्ताः अत्र अवतरत अवतरत संवौषट् आह्वाननम् । ॐ ह्रीं श्रीऋषभादिमहावीरपर्यन्तचतुर्विंशतितीर्थंकरा: जन्मकल्याणकप्राप्ता: अत्र | तिष्ठत तिष्ठत ठः ठः स्थापनम् । ॐ ह्रीं श्रीऋषभादिमहावीरपर्यन्तचतुर्विंशतितीर्थंकरा: जन्मकल्याणकप्राप्ताः अत्र मम सन्निहितो भवत भवत वषट् सन्निधिकरणम् । (चाल) जल निर्मल धार कटोरी, पूजूं जिन निज कर जोड़ी। पद पूजन करहुँ बनाई, जासे भवजल तर जाई ।। ॐ ह्रीं श्रीऋषभादिमहावीरपर्यन्तचतुर्विंशतितीर्थंकरेभ्य: जन्मकल्याणकप्राप्तेभ्यः जन्म-जरा-मृत्यु-विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा। चन्दन केशरमय लाऊँ, भव का आताप शमाऊँ। पद पूजन करहुँ बनाई, जासे भवजल तर जाई।। ॐ ह्रीं श्रीऋषभादिमहावीरपर्यन्तचतुर्विंशतितीर्थंकरेभ्य: जन्मकल्याणकप्राप्तेभ्यः संसारतापविनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा। अक्षत शुभ धोकर लाऊँ, अक्षयगुण को झलकाऊँ। पद पूजन करहुँ बनाई, जासे भवजल तर जाई ।। ॐ ह्रीं श्रीऋषभादिमहावीरपर्यन्तचतुर्विंशतितीर्थंकरेभ्य: जन्मकल्याणकप्राप्तेभ्यः अक्षयपदप्राप्तये अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा।
SR No.009468
Book TitlePratishtha Pujanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Shastri
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year2012
Total Pages240
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, M000, & M005
File Size1 MB
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