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________________ 130 n प्रतिष्ठा पूजाञ्जलि जन्मकल्याणक स्तुति (१) (पद्धरि ) तुम जगत - ज्योति तुम जगतईश, तुम जगत- गुरु जग नमत शीस । तुम केवलज्ञानप्रकाशकार, तुम ही सूरज तम - मोहहार ।। १ ।। तुम देखे भव्यकमल फुलाय, अघभ्रमर तुरत तहंसे पलाय । जय महागुरु जय विश्वज्ञान, जय गुणसमुद्र करुणानिधान ।। २ ।। जो चरणकमल माथे धराय, वह भव्य तुरत सद्ज्ञान पाय । हे नाथ ! मुक्तिलक्ष्मी अबार, तुम को देखत हैं प्रेम धार ।। ३ ।। कृतकृत्य भए हम दर्श पाय, हम हर्ष नहीं चित्त में समाय । हम जन्म सफल मानो अबार, तुमको परशे हे भव - उबार ।।४।। (२) (पद्धरि ) जय वीतराग हत रागदोष, राजत दर्शन क्षायिक अदोष । तुम पापहरण हो नि:कषाय, पावन परमेष्ठी गुणनिकाय । । १ । । तुम नयप्रमाण ज्ञाता अशेष, श्रुतज्ञान सकल जानो विशेष । तुम अवधिज्ञानधारी विशाल, मतिज्ञानधरण सुखकर कृपाल ।।२।। तुम कामरहित हो कामजीत, तुम विद्यानिधि हो कर्मजीत । तुम शांत स्वभावी स्वयंबुद्ध, तुम करुणानिधि धर्मी अक्रुद्ध || ३ || तुम वदतांवर कृतकृत्य ईश, वाचस्पति गुणनिधि गिराईश । तुम मोक्षमार्ग उपदेशकार, महिमा तुमरी को लहे पार || ४ || (दोहा) नाम लिये श्रुति के किये, पातक सर्व पलाय । मंगल होवे लोक में, स्वानुभूति प्रगटाय ।। u
SR No.009468
Book TitlePratishtha Pujanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Shastri
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year2012
Total Pages240
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, M000, & M005
File Size1 MB
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