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________________ प्रतिष्ठा पूजाञ्जलि 123 n ताजा पकवान बनाऊँ, जासे क्षुधरोग नशाऊँ। ।। जिनमात जगूं सुखदाई, जिनधर्म प्रभाव सहाई।। ॐ ह्रीं श्रीचतुर्विशंतितीर्थंकरेभ्यः गर्भकल्याणकप्राप्तेभ्यः क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा। दीपक रत्ननमय लाऊँ, सब दर्शनमोह हटाऊँ। जिनमात जजूं सुखदाई, जिनधर्म प्रभाव सहाई।। ॐ ह्रीं श्रीचतुर्विशतितीर्थंकरेभ्य: गर्भकल्याणकप्राप्तेभ्य: मोहान्धकारविनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा। धूपायन धूप जलाऊँ, कर्मन का वंश मिटाऊँ। जिनमात जगूं सुखदाई, जिनधर्म प्रभाव सहाई।। ॐ ह्रीं श्रीचतुर्विशंतितीर्थंकरेभ्यः गर्भकल्याणकप्राप्तेभ्यः अष्टकर्मदहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा। फल उत्तम-उत्तम लाऊँ, शिवफल उद्देश बनाऊँ। जिनमात जजूं सुखदाई, जिनधर्म प्रभाव सहाई।। ॐ ह्रीं श्रीचतुर्विशंतितीर्थंकरेभ्यः गर्भकल्याणकप्राप्तेभ्यः मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा। शुचि आठों द्रव्य मिलाऊँ, गुण गाकर मन हरषाऊँ। जिनमात जगूं सुखदाई, जिनधर्म प्रभाव सहाई।। ॐ ह्रीं श्रीचतुर्विशंतितीर्थंकरेभ्यः गर्भकल्याणकप्राप्तेभ्यः अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्य | निर्वपामीति स्वाहा। गर्भकल्याणकविभूषित चौबीस तीर्थंकरों के लिए अर्घ्य (गीता) सर्वार्थसिद्धि विमान से जिन ऋषभ चय आए यहाँ, मरुदेवी माता गरभ शोभै होय उत्सव शुभ तहाँ।
SR No.009468
Book TitlePratishtha Pujanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Shastri
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year2012
Total Pages240
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, M000, & M005
File Size1 MB
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