SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 122
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 122 प्रतिष्ठा पूजाञ्जलि गर्भकल्याणक पूजन (दोहा) श्री जिन चौबिस मात शुभ, तीर्थंकर उपजाय । कियो जगत कल्याण बहु, पूजों द्रव्य मँगाय ।। ॐ ह्रीं श्रीचतुर्विशंतितीर्थंकरा: गर्भकल्याणकप्राप्ताः अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननम्। ॐ ह्रीं श्रीचतुर्विशतितीर्थंकरा: गर्भकल्याणकप्राप्ताः अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम्। ॐ ह्रीं श्रीचतुर्विशंतितीर्थंकरा: गर्भकल्याणकप्राप्ताः अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणम्। (चाल) भरि गंगा जल अविकारी, मुनि चित सम शुचिता धारी। जिनमात जगूं सुखदाई, जिनधर्म प्रभाव सहाई।। ॐ ह्रीं श्रीचतुर्विशंतितीर्थंकरेभ्य: गर्भकल्याणकप्राप्तेभ्यः जन्म-जरा-मृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा। घसि केशर चंदन लाऊँ, भवताप सकल प्रशमाऊँ। जिनमात जगूं सुखदाई, जिनधर्म प्रभाव सहाई।। ॐ ह्रीं श्रीचतुर्विशंतितीर्थंकरेभ्य: गर्भकल्याणकप्राप्तेभ्यः संसारतापविनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा। शुभ अक्षत दीर्घ अखण्डे, तृष्णापर्वत निज खण्डे । जिनमात जजूं सुखदाई, जिनधर्म प्रभाव सहाई।। ॐ ह्रीं श्रीचतुर्विशंतितीर्थंकरेभ्य: गर्भकल्याणकप्राप्तेभ्यः अक्षयपदप्राप्तये अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा। सुवरणमय पावन फूला, चित कामव्यथा निर्मूला। जिनमात जगँ सुखदाई, जिनधर्म प्रभाव सहाई।। ॐ ह्रीं श्रीचतुर्विशंतितीर्थंकरेभ्य: गर्भकल्याणकप्राप्तेभ्य: कामबाणविध्वंसनाय । पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।
SR No.009468
Book TitlePratishtha Pujanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Shastri
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year2012
Total Pages240
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, M000, & M005
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy