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________________ प्रतिष्ठा पूजाञ्जलि n ८ अट्ठाईस गुणयुक्त साधुपरमेष्ठी के लिए अर्घ्य ( नाराच ) तजे सु राग-द्वेष भाव शुद्धभाव धारते, परम स्वरूप आपका समाधि से विचारते । करें दया सुप्राणि जंतु चर-अचर बचावते, जजों यति महान प्राणिरक्षव्रत निभावते । । १ । । ॐ ह्रीं श्री अहिंसामहाव्रतधारकसाधुपरमेष्ठिभ्योऽर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।१७१।। असत्य सर्व त्याग वाक् शुद्धता प्रचारते, जिनागमानुकूल तत्त्व सत्य सत्य धारते । अनेक नय प्रकार के वचन विरोध टारते, जजों यति महान सत्यव्रत सदा सम्हारते ।।२।। ॐ ह्रीं श्री अनृतपरित्यागमहाव्रतधारकसाधुपरमेष्ठिभ्योऽर्घ्यं नि. स्वाहा ।। १७२ ।। 107 अचौर्यव्रत महान धार शौचभाव भावते, जजों यती सदा सुज्ञान ध्यान मन रमावते । सुतृप्त हैं महान आत्मजन्य सौख्य पावते. जजों यती सदा सुज्ञान ध्यान मन रमावते ॥ ३॥ ॐ ह्रीं श्री अचौर्यमहाव्रतधारकसाधुपरमेष्ठिभ्योऽर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।१७३ ।। सुब्रह्मचर्य व्रत महान धार शील पालते, न काष्ठमय कलत्र देव भामिनी विचारते । मनुष्यणी सु पशुतियाँ कभी न मन रमावते, जाजें यती न स्वप्नमाहिं शील को गमावते ||४|| ॐ ह्रीं श्री ब्रह्मचर्यमहाव्रतधारकसाधुपरमेष्ठिभ्योऽर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।१७४।। u
SR No.009468
Book TitlePratishtha Pujanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Shastri
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year2012
Total Pages240
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, M000, & M005
File Size1 MB
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