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________________ 106 प्रतिष्ठा पूजाञ्जलि पुरुष वेशठ आदि महान का, कथन वृत्त सकल कल्याण का।कोटि छब्बीस पद को धारता, जज़े पाठक अघ सब टारता ।।२२।। ॐ ह्रीं श्री कल्याणवादपूर्वधारकोपाध्यायपरमेष्ठिभ्योऽयं निर्वपामीति स्वाहा ।।१६७।। कथत भेद सुवैद्यक शास्त्र का, कोटि तेरह पद सुधारका। पूर्व नाम सुप्राण प्रवाद है, जजू पाठक सुरनतपाद है ।।२३।। ॐ ह्रीं श्री प्राणप्रवादपूर्वधारकोपाध्यायपरमेष्ठिभ्योऽयं निर्वपामीति स्वाहा ।।१६८।। कथत छंदकला संगीत को, कोटि नव पद मध्यम रीत को।। पूर्व नाम सु क्रिया विशाल है, जजू पाठक दीनदयाल है ।।२४।। ॐ ह्रीं श्री क्रियाविशालपूर्वधारकोपाध्यायपरमेष्ठिभ्योऽर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा ।।१६९।। तीन लोक विधान विचारता, कोटि अर्द्ध सु द्वादश धारता। पूर्व बिन्दु त्रिलोक विशाल है, जजू पाठक करत निहाल है ।।२५।। ॐ ह्रीं श्री त्रैलोक्यबिन्दुपूर्वधारकोपाध्यायपरमेष्ठिभ्योऽयं निर्वपामीति स्वाहा ।।१७०।। अंग इकादश पूर्व दश, चार-सुज्ञायक साध। जजूं गुरु के चरण दो, यजन सु अव्याबाध ।। ॐ ह्रीं श्रीअस्मिन् बिम्बप्रतिष्ठामहोत्सवविधाने मुख्यपूजार्हसप्तमवलयोन्मुद्रितद्वादशांगश्रुतदेवताभ्यस्तदाराधकोपाध्यायपरमेष्ठिभ्यश्च पूर्णायँ निर्वपामीति स्वाहा। धन्य-धन्य है घड़ी आज की... धन्य-धन्य है घड़ी आज की जिनधुनि श्रवण परी। तत्त्व प्रतीत भई अब मेरे मिथ्यादृष्टि टरी।।टेक।। जड़ तें भिन्न लखी चिन्मूरत चेतन स्वरस भरी। अहंकार ममकार बुद्धि प्रति पर में सब परिहरी ।।१।। पाप-पुण्य विधि बन्ध अवस्था भासी अति दुःख भर । वीतराग-विज्ञान भावमय परिणति अति विस्तरी ।।२।। चाह-दाह विनसी बरसी पुनि समता मेघ झरी। बाढ़ी प्रीति निराकुल पद सों भागचंद हमरी ।।३।।
SR No.009468
Book TitlePratishtha Pujanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Shastri
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year2012
Total Pages240
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, M000, & M005
File Size1 MB
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