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________________ छठवाँ दिन है नहीं, उल्टे स्वयं की धर्माराधना संकट में पड़ सकती है। इसलिए सुरक्षित मार्ग तो यही है कि हम जगत की चिन्ता छोड़ क्षणभंगुर जीवन के जो भी क्षण शेष हैं, उन सभी को अपने आत्मकल्याण के लिए ही समर्पित कर दें। बिना किसी संकल्प - विकल्प के; बिना किसी झंझट में पड़े जितना जो संभव हो, उतना जिनवाणी का प्रचार-प्रसार करें; प्रचार-प्रसार के लोभ में अपने को अधिक उलझायें नहीं। शिथिलाचार को रोकना कोई साधारण काम नहीं है, वह तो शक्तिशाली समर्थ लोगों का काम है। उन चार हजार नवदीक्षित राजाओं को भी तो इन्द्र ने ही रोका था, किसी साधारण व्यक्ति ने नहीं । यह काम तो समाज के उन कर्णधारों का है, जो समाज का प्रतिनिधित्व करते हैं, समाज को संचालित करते हैं। यदि वे स्वयं शिथिलाचार का पोषण करते हैं तो फिर हम और आप क्या कर सकते हैं? अतः मैं तो सभी आत्मार्थी बंधुओं से यह अनुरोध करता हूँ कि इसमें अपने को उलझायें नहीं। जो जैसा करेगा, वह वैसा भरेगा; हम किस-किस को बचाते फिरेंगे? हाँ, हम स्वयं वस्तु का सच्चा स्वरूप समझकर स्वयं को अवश्य बचा सकते हैं । 53 बाजार में यदि खोटा सिक्का चलता है तो उसे रोकने का काम सरकार का है। यदि हम उसे रोकने जावेंगे तो स्वयं उलझ सकते हैं। कहते हैं कि नकली सिक्का चलाने वालों के हाथ बहुत लम्बे होते हैं, वे लोग अत्यधिक संगठित होते हैं। वे बाधक बनने वालों को अपने रास्ते से हटाने के लिए कुछ भी कर सकते हैं। सरकार के हाथ उनके हाथों से भी लम्बे हैं । अतः सरकार ही चाहे तो उनके विरुद्ध कुछ कर सकती है । इसीप्रकार समाज के सन्दर्भ में भी समझना चाहिए, शिथिलाचारी साधुओं के सन्दर्भ में भी समझना चाहिए । हाँ, एक बात अवश्य है कि भले ही हम नकली सिक्कों को बाजार में चलने से न रोक सके; पर इतनी सावधानी तो रखनी ही होगी कि वे नकली सिक्के हमारी जेब में न आ जाय । इसीप्रकार हम लोक में चलते हुए
SR No.009467
Book TitlePanchkalyanak Pratishtha Mahotsava
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages96
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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