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________________ चौथा दिन जन्मकल्याणक की विशेष चर्चा तो कल होगी, आज़ तो गर्भकल्याणक का दिन है । कल गर्भकल्याणक की पूर्वक्रिया के दिन आपने तीर्थंकर की माता के सोलह स्वप्न देखे थे और आज प्रात: महाराजा नाभिराय ने महारानी मरुदेवी को उनका फल बताया यह भी आपने देखा । यह भी देखा कि माता मरुदेवी की छप्पन कुमारियाँ विविध प्रकार से सेवा करती हैं, अष्ट देवियाँ उनका मंगलगान करती हैं, सबप्रकार की अनुकूलता प्रदान करती हैं, उनके चित्त को प्रसन्न रखने के लिए उनसे अनेक प्रकार के प्रश्नोत्तर करती हैं, पहेलियाँ बूझती हैं, तत्त्वचर्चा करती हैं। - 27 अभी तो तीर्थंकर का जीव गर्भ में भी नहीं आया कि उसके पहले से ही रत्नों की वर्षा, देवियों द्वारा माता की सेवा और अयोध्या के सभी नागरिकों, माता-पिता एवं परिवारजनों को सर्वप्रकार अनुकूलता हो गई है। तीर्थंकर प्रकृति जैसे महान पुण्य के साथ कुछ ऐसा भी पुण्य बंध सहज ही होता है, जो आगे-आगे चलकर सर्वप्रकार अनुकूलता प्रदान करता है। न तो वे अभी भगवान ही बने हैं और न तीर्थंकर नामक नामकर्म की प्रकृति का भी उदय आया है, तेरहवें गुणस्थान में ही भगवत्ता प्रकट होगी, सर्वज्ञता प्रकट होगी और तेरहवें गुणस्थान में ही तीर्थंकर प्रकृति का उदय भी आयेगा, तब तक तो तीन-तीन कल्याणक हो चुके होंगे, फिर भी उनके गर्भ में आने के पूर्व से ही सर्वप्रकार की अनुकूलता बन जाती है, इन्द्र और देवता सेवा में हाजिर रहते हैं, पाण्डुकशिला पर जन्माभिषेक होता है। यहाँ एक प्रश्न उपस्थित होता है कि क्या वे जन्म से भगवान नहीं थे, जन्म से ही तीर्थंकर नहीं थे ? यदि ऐसा है तो फिर लोग ऐसा क्यों कहते हैं, कि भगवान गर्भ में आये, भगवान का जन्म हुआ, भगवान ने दीक्षा ली आदि । भाई, यह सब तो व्यवहार के वचन हैं। यह तो तुम जानते ही हो कि भगवान तो उसे कहते हैं, जो सर्वज्ञ, वीतरागी और हितोपदेशी हो ।
SR No.009467
Book TitlePanchkalyanak Pratishtha Mahotsava
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages96
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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