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________________ पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव के नाश करने का पुरुषार्थ किसी भी जन्म में नहीं किया । अतः हमारे जन्म का उत्सव करने योग्य नहीं है। जो जन्म स्वपर के कल्याण से सार्थक हुआ हो, वही जन्म कल्याणस्वरूप होता है, इसीकारण तीर्थंकरों का जन्मकल्याणक महोत्सव मनाया जाता है । 26 यह उनका अन्तिम जन्म था, इसलिए कल्याणस्वरूप हो गया। इसके बाद उनका जन्म नहीं होगा। जन्म नहीं होगा तो मरण भी नहीं होगा; क्योंकि मरण संज्ञा उसी देहावसान की है, जिसके बाद अन्य देह का धारण हो, कहीं अन्यत्र जन्म हो। उस देहावसान को तो निर्वाण या मोक्ष कहते हैं, जिसके बाद जन्म नहीं होता । जन्म-मरण के अभाव का नाम ही निर्वाण है, मोक्ष है । जिस जन्म के बाद मरण न हो, निर्वाण हो; वह जन्म ही कल्याणस्वरूप है, उसका ही इसप्रकार का महोत्सव मनाया जाता है। कहा भी है सित छटवीं आषाढ़, माँ त्रिशला के गर्भ में । अन्तिम गर्भावास यही जान प्रणमूं प्रभो ॥ तेरस दिन सित चैत, अन्तिम जन्म लियो प्रभु । नृप सिद्धार्थ निकेत, इन्द्र आय उत्सव कियो ॥ अन्तिम जन्म और अन्तिम गर्भावास ही उत्सव के योग्य हैं। यही कारण है कि तीर्थंकरों के गर्भ और जन्म कल्याणस्वरूप माने गये हैं, हमारे- तुम्हारे नहीं; क्योंकि हमें तुम्हें तो न मालूम अभी कितने जन्म धारण करने हैं, कितनी बार मरना है । - रही हम दो और हमारे दो की बात, सो भाई हमारे तीर्थंकर तो अकेले ही होते हैं. उनके कोई सगे भाई-बहिन ही नहीं होते; पर उनके अभिभावक संयम के मार्ग से अपने परिवार को नियोजित रखते हैं, आज के लोगों के समान कृत्रिम साधनों से नहीं । १. डॉ. भारिल्ल : महावीर पूजन : गर्भ कल्याणक और जन्म कल्याणक के अर्घ ।
SR No.009467
Book TitlePanchkalyanak Pratishtha Mahotsava
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages96
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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