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________________ पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव क्या आप जानती हैं कि ये शृंगार सामग्री कितनी क्रूरता से बनती है, इनके निर्माण में कितने जीवों की हिंसा होती है ? स्वयं की सुन्दरता निखारने के लिए निरीह मूक पशु-पक्षियों का यह प्रतारण हमें कहाँ ले जायगा ? इसका भी विचार करना चाहिए । 8 मैं यह नहीं कहता हूँ कि आप सजे संवरे नहीं, पर यह अवश्य कहना चाहता हूँ कि इस कार्य में हिंसक सामग्री का उपयोग कदापि न करें। ये रेशमी साड़ियाँ, जो करोड़ों कीड़ों को मारकर बनाई जाती हैं इनका उपयोग कदापि न करें, अपने जीवन को धर्ममय बनायें । बहिनों से कही गई मेरी इस बात को सुनकर भाइयों को मुस्कराने की जरूरत नहीं; क्योंकि उनका भी कुछ उत्तरदायित्व है, उन्हें भी अपने उत्तरदायित्व को पहिचानना चाहिए। यदि इस उत्सव में पिता आ गये हों, पर कार्याधिक्य से पुत्र न आ पाये हों तो उन पिताओं के जीवन में भी इस पंचकल्याणक के दर्शन से ऐसा परिवर्तन आना चाहिए कि उनके व्यवहार से पुत्रों को भरोसा हो जावे कि अब तिजोड़ी की चाबी प्राप्त करने के लिए पिताजी के मरने का इन्तजार नहीं करना पड़ेगा । धन्धे पानी से उनका मोह कुछ न कुछ कम अवश्य होना चाहिए। - मैंने ऐसे लोग देखे हैं कि जबतक उनका स्वर्गवास नहीं हो गया, तबतक बच्चे अपने घर का फर्नीचर भी नहीं बदलवा पाये; उनके मरने के उपरान्त ही घर में कुछ परिवर्तन संभव हो पाया है। इतना भी घर से क्या चिपटना ? अब उम्र हो गई है तो घर से विरक्त होकर आत्महित में प्रवृत्त होना ही चाहिए । यदि इस पंचकल्याणक में पिता न आ पाये हों और पुत्र आ गये हों तो उनमें भी कुछ न कुछ बदलाव तो आना ही चाहिए। उनके घर लौटने पर उनके माता-पिता की कम से कम यह चिन्ता तो समाप्त होनी ही चाहिए कि अब हमारे देहान्त के बाद भी ये जिनमंदिर बिना पूजा-पाठ के नहीं रहेंगे; इनमें वैसी ही हलचल रहेगी, जैसी कि आज रहती है। इन पंचकल्याणकों
SR No.009467
Book TitlePanchkalyanak Pratishtha Mahotsava
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages96
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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