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________________ पहला दिन __ आरम्भ के २५-३० वर्ष तक यदि कोई बालक न रहेगा तो उसके बाद के वर्षों में जवान कहाँ से आवेंगे? जब जवान ही न होंगे तो फिर दुबारा उत्पत्तिक्रम भी कैसे संभव होगा? यह तो सर्व विनाश का अविवेकपूर्ण रास्ता है, जिसे कोई भी समझदार व्यक्ति नहीं अपना सकता। इसीप्रकार मन्दिरों, मूर्तियों और पंचकल्याणकों की अधिकता देखकर इन पर पूर्णतः प्रतिबन्ध लगाना समझदारी का काम नहीं है। क्या आप यह पसन्द करेंगे कि हमारी भावी पीढ़ियाँ एवं इतिहासकार हमारे युग को इस रूप में याद करें कि यह एक ऐसा युग था कि जब भोग के मन्दिर तो अनेक बने, पर योग का मन्दिर एक भी न बना; भोग के उत्सव तो प्रतिवर्ष लाखों हुए, पर योग का उत्सव एक भी न हुआ। स्वर्णयुग के रूप में तो हम उस युग को ही याद करते हैं कि जिस युग में देवगढ़ जैसे देवों के गढ़ बने। इस बात पर गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है और गुणदोष के आधार पर संतुलित दृष्टिकोण अपनाने की परमावश्यकता है। आवश्यकतानुसार ही होने वाले जिनमन्दिरों के निर्माण और पंचकल्याणकों पर प्रतिबंध लगाने के स्थान पर उनमें समागत विकृतियों का परिमार्जन किया जाना अधिक जरूरी है, उनका उपयोग वीतरागी धर्म के समुचित प्रचार-प्रसार में किया जाना ही सही मार्ग है। नकारात्मक रास्ता चुनने के स्थान पर रचनात्मक रास्ता चुनना ही श्रेयस्कर है। आज पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव का पहला दिन है और इस विशाल पंडाल का निर्माण अयोध्यानगर के रूप में हुआ है; क्योंकि यहाँ इस अवसर्पिणीकाल के प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव का पंचकल्याणक महोत्सव होने जा रहा है। उनका जन्म अयोध्या में हुआ था, अत: यह पंडाल भी अयोध्यानगर के रूप में निर्मित हुआ है। __ यद्यपि इस पंचकल्याणक के विधिनायक ऋषभदेव (आदिनाथ) हैं; तथापि इसमें सभी तीर्थंकरों की मूर्तियाँ प्रतिष्ठित होंगी। मूल विधि तो
SR No.009467
Book TitlePanchkalyanak Pratishtha Mahotsava
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages96
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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