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________________ पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव श्रीकानजीस्वामी के पुण्यप्रताप से वहाँ लाखों नये दिगम्बर जैन बने और उन्होंने अपने-अपने नगरों में अनेक दिगम्बर जिनमन्दिर बनवाये। क्या इन जिनमन्दिरों का निर्माण भी अनावश्यक था? क्या वहाँ होने वाले पंचकल्याणक भी अनावश्यक थे ? इसीप्रकार प्रत्येक नगर में नई-नई कालोनियाँ बन रही हैं, जिनमें सैकड़ों जैन परिवार भी बसते जा रहे हैं। मुख्य नगर से मीलों दूर बनने वाले इन उपनगरों में भी जिनालयों का निर्माण अत्यन्त आवश्यक है, तदर्थ पंचकल्याणक भी आवश्यक ही हैं। . न तो नये बनने वाले प्रत्येक जिनमन्दिर का निषेध ही आवश्यक है और न बिना विचारे समर्थन करना ही ठीक है। इसीप्रकार न तो प्रत्येक पंचकल्याणक का विरोध उचित है और न ही बिना समझे समर्थन करना ठीक है। प्रत्येक के सम्बन्ध में व्यक्तिगत रूप से गुण-दोष के आधार पर सहमति और असहमति व्यक्त की जानी चाहिए। देश की बढ़ती हुई जनसंख्या को देखकर जहाँ एक ओर अधिक संतान पैदा करने वालों को परिवार नियोजित करने के लिए प्रेरित किया जाता है, उनके लिए सरकार की ओर से जिस अस्पताल में परिवार नियोजन की सब सुविधाएँ जुटाई जाती हैं, वहीं दूसरी ओर उसी अस्पताल में उनका भी इलाज किया जाता है, जिनके सन्तान नहीं होती; क्योंकि जिनके एक-दो सन्ताने हैं, उन्हें तो अधिक सन्ताने आवश्यक नहीं हैं, पर जिनके संतान हैं ही नहीं, उन्हें तो संतान चाहिए ही। जिसप्रकार परिवार नियोजन के मामले में सरकार ने सन्तुलित दृष्टिकोण अपनाया है; उसीप्रकार हमें भी जिनमन्दिर निर्माण और पंचकल्याणक प्रतिष्ठाओं के सन्दर्भ में सन्तुलित दृष्टिकोण बनाना चाहिए। बढ़ती हुई जनसंख्या से घबड़ाकर यदि सरकार २५-३० वर्ष के लिए सन्तानें पैदा करने पर पूर्णतः प्रतिबन्ध लगा दे तो उसका क्या दुष्परिणाम होगा? क्या आप यह भी जानते हैं ?
SR No.009467
Book TitlePanchkalyanak Pratishtha Mahotsava
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages96
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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