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________________ पञ्चास्तिकाय परिशीलन प्रभाव से मेरे बालक मेरी बात मानते हैं आदि कोई भी कर्तृत्व की ह्र आकुलता नहीं रहती; क्योंकि प्रत्येक पदार्थ स्वयं के उत्पाद-व्यय-ध्रुव स्वभाव से टिका है, अन्य के कारण नहीं। यहाँ जिन पाँच अस्तिकायों का स्वरूप बताया, उन्हें अर्थसमय कहते हैं। उन सभी को जैसे हैं वैसा जानने का कार्य ज्ञान का है। ज्ञान की विशेष अवस्था भी स्वयं के सामान्य ज्ञानस्वभाव के कारण प्रकट होती है; पर-पदार्थों के कारण प्रकट नहीं होती। सभी को जानना मेरा स्वभाव है, पर को अपना मानना अथवा राग-द्वेष करना मेरा स्वभाव नहीं है। ऐसी प्रतीति ज्ञानी को हो जाती है।" इसप्रकार कालद्रव्य सहित पाँचों अस्तिकाय द्रव्य पूर्ण स्वतंत्र एवं स्वावलम्बी हैं ह्र यद्यपि कालद्रव्य एकप्रदेशी होने से उसके कायत्व नहीं है, परन्तु वह अस्तित्वमय है - ऐसी पूर्ण स्वतंत्र स्वावलम्बी वस्तुस्वरूप की महिमा जिसे ज्ञात हुई, उसे सत्य का माहात्म्य आने पर साधकदशा उत्पन्न होती है और यही मोक्षमार्ग है। पूर्णरूप से स्वभावसन्मुख होने पर वीतरागता और केवलज्ञान उत्पन्न होता है। यह पंचास्तिकाय को जानने का फल है। गाथा ५ विगत गाथा में बताया है कि जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्मतथा आकाश अस्तित्व में नियत, अनन्यमय अणुमहान, पूर्ण स्वतंत्र एवं स्वावलम्बी है। अब प्रस्तुत गाथा में द्रव्यों के अस्तित्व व कायत्व को सिद्ध करते हैं। गाथा मूलतः इसप्रकार हैं ह्र जेसिं अत्थि सहाओ गुणेहिं सह पजएहिं विविहेहिं। ते होंति अस्थिकाया णिप्पण्णं जेहिं तेल्लोक्कं ।।५।। (हरिगीत) अनन्यपन धारण करें जो विविध गुण पर्याय से। उन अस्तिकायों से अरे त्रैलोक यह निष्पन्न हैं॥५॥ जिन्हें विविध गुणों और पर्यायों के साथ अपनत्व है, वे अस्तिकाय हैं। इन पंचास्तिकायों से ही तीन लोक निष्पन्न हैं। इस गाथा की टीका में आचार्य अमृतचन्द्र ने पाँच अस्तिकायों का अस्तित्व और कायत्व सिद्ध करते हुए कहा है कि ह्र "वास्तव में पंच अस्तिकायों को विविध गुणों और पर्यायों के साथ स्वपना, अपनापन या अनन्यपना है। वस्तु की व्यतिरेकी विशेष पर्यायें हैं और उसके अन्वयी विशेष गुण हैं; इसलिए एक पर्याय से प्रलय को प्राप्त होनेवाली, अन्य पर्याय से उत्पन्न होनेवाली और अन्वयी गुण से ध्रुव रहनेवाली एक ही वस्तु को व्यय-उत्पाद-ध्रौव्य लक्षण घटित होता ही है। __ यदि गुणों तथा पर्यायों के साथ वस्तु को सर्वथा अन्यत्व अर्थात् अन्य-अन्यपना हो, तब तो अन्य कोई विनाश को प्राप्त होगा, अन्य कोई प्रादुर्भाव को प्राप्त होगा और अन्य कोई ध्रुव रहेगा ह्र इसप्रकार सब विप्लव हो जायेगा; इसलिए पाँच अस्तिकायों संबंधी उपर्युक्त कथन ही सत्य है, योग्य है, न्याययुक्त है। वस्तुतः विराग को अपने जन्म के पूर्व पिता के साथ घटी अघट घटनाओं की जानकारी नहीं थी और उसकी माँ उसे पिता का पूर्व इतिहास बताना भी नहीं चाहती थी; परन्तु वह अपने बेटे को वैसे ही वातावरण में जाने की अनुमति भी कैसे दे सकती थी ? अतः पहले तो उसने स्पष्ट मना ही कर दिया; परन्तु जब माँ ने उसकी परदेश जाने की तीव्र इच्छा, अति उत्साह और विशेष आग्रह देखा तो उसने वस्तु स्वातंत्र्य के सिद्धान्त को स्मरण करते हुए और विराग की होनहार का विचार कर उसे अध्ययन हेतु परदेश जाने की अनुमति दे दी। साथ ही अपने सदाचार को सुरक्षित रखने के लिए एक बार पुनः सचेत कर दिया।- नींव का पत्थर-पृष्ट-२३ (22)
SR No.009466
Book TitlePanchastikay Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2010
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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