SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 162
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नियमसार अनुशीलन भाग-३ लेखन एवं गाथा व कलशों का पद्यानुवाद डॉ. हुकमचन्द भारिल्ल शास्त्री, न्यायतीर्थ, साहित्यरत्न, एम. ए., पीएच. डी., डी. लिट् प्रकाशक पण्डित टोडरमल सर्वोदय ट्रस्ट ए-४, बापूनगर, जयपुर-३०२०१५ फोन : ०१४१-२७०७४५८, २७०५५८१ E-mail: ptstjaipur@yahoo.com प्रथम संस्करण हिन्दी : (१३ नवम्बर २०१२, भगवान महावीर निर्वाणोत्सव) वीतराग - विज्ञान ( हिन्दी-मराठी) के सम्पादकीयों के रूप में मूल्य २५ रुपये टाइपसैटिंग : त्रिमूर्ति कम्प्यूटर्स, ए - ४, बापूनगर, जयपुर मुद्रक : प्रिन्ट 'ओ' लैण्ड बाईस गोदाम, जयपुर : कुल : २ हजार ९ हजार ६०० ११ हजार ६०० क्षयोपशम बहुत है पण्डित हुकमचन्द के बारे में तो हमने कहा था कि उसका क्षयोपशम बहुत है, बहुत है। वर्तमान तत्त्व की प्रभावना में उसका बड़ा हाथ है, स्वभाव का भी सरल है। अच्छा मिल गया, टोडरमल स्मारक को बहुत अच्छा मिल गया। गोदीका के भाग्य से मिल गया। गोदीका पुण्यशाली है न, सो मिल गया। तत्त्व की बारीक से बारीक बात पकड़ लेता है, पण्डित हुकमचन्द बहुत ही अच्छा है। ह्र आध्यात्मिकसत्पुरुष श्री कानजी स्वामी समयसार का शिखर पुरुष समयसार वाचना में आपके समयसार व्याख्यान सुनकर हृदय बहुत ही गद्गद् हो गया और उससे बहुत धर्मलाभ भी प्राप्त हुआ। मुझे तो ऐसा लगता है कि जैनदर्शन का मर्म 'समयसार' में भरा है और 'समयसार' का व्याख्याता आज | आपसे बढकर दूसरा नहीं है । आपको इसका बहुत गूढ-गम्भीर ज्ञान भी है और उसके प्रतिपादन की सुन्दर शैली भी आपके पास है। यदि आपको 'समयसार का शिखर पुरुष' भी आज की | तिथि में घोषित किया जाये तो कोई अतिशयोक्ति नहीं है। आज के समय में जब एक-दो बच्चों को भी पालना ( संस्कारित करना) बहुत कठिन है, आपने सैकड़ों बालकों को जैनदर्शन का विद्वान बनाकर समाज की महती सेवा की है, जो इतिहास में सदैव स्वर्णाक्षरों में लिखी जाती रहेगी। आप चिरायु हों, स्वस्थ रहें और जैनधर्म की महान प्रभावना करते रहें तथा सम्पूर्ण समाज भी एकजुट होकर आपके प्रवचनों को बड़ी सद्भावना से सुनकर लाभान्वित होती रहे ह्न यह मेरी हार्दिक अभिलाषा है। आशीर्वाद। ह्र आचार्य विद्यानंद मुनि
SR No.009465
Book TitleNiyamsara Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2012
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy