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________________ अजीव अधिकार ( अनुष्टुभ् ) गलनादणुरित्युक्तः पूरणात्स्कन्धनामभाक् । विनानेन पदार्थेण लोकयात्रा न वर्तते ।। ३७ ।। अइथूलथूल थूलं थूलसुहुमं च सुहुमथूलं च । सुमं अइसुमं इदि धरादियं होदि छन्भेयं ॥ २१ ॥ भूपव्वदमादीया भणिदा अइथूलथूलमिदि खंधा । थूला इदि विण्णेया सप्पीजलतेल्लमादीया ।। २२ ।। छायातवमादीया थूलेदरखंधमिदि वियाणाहि । सुहुमथूलेदि भणिया खंधा चउरक्खविसया य ।।२३।। ६३ उक्त गाथा में पुद्गल के भेदों की नाममात्र चर्चा की है। टीका में भेदों के भी भेद गिना दिये हैं। जिसप्रकार जीवद्रव्य में स्वभाव और विभाव भावों की बात आती है; उसीप्रकार यहाँ पुद्गल में भी स्वभाव और विभाव के भेद किये हैं। इतना विशेष है कि जीव तो विभावभावों के होने पर दुखी होता है, पर पुद्गल नहीं; क्योंकि जिसमें सुख नाम का गुण होता है, उसमें ही दुख नाम की विकारी पर्याय होती है। पुद्गल में सुख नाम का गुण नहीं है; अतः उसके सुखी दुखी होने का प्रश्न ही उपस्थित नहीं होता ||२०|| इस गाथा की टीका के उपरान्त मुनिराज पद्मप्रभमलधारिदेव एक छन्द लिखते हैं; जिसका पद्यानुवाद इसप्रकार है ( हरिगीत ) गलन से परमाणु पुद्गल खंध पूरणभाव से । अर लोकयात्रा नहीं संभव बिना पुद्गल द्रव्य के ॥३७॥ पुद्गलद्रव्य के गलन अर्थात् भेद से परमाणु और पूरण अर्थात् संघात से स्कंध की उत्पत्ति होती है। इस पुद्गलद्रव्य के बिना लोकयात्रा संभव नहीं है । महाशास्त्र तत्त्वार्थसूत्र में दो सूत्र आते हैं; जिनमें कहा गया है कि अणु की उत्पत्ति भेद से और स्कंध की उत्पत्ति संघात से होती है। इसी बात को इस छन्द में बताया गया है ।। ३७ ।। विगत गाथा की टीका के अन्तिम वाक्य में कहा था कि आगामी गाथाओं में स्कंधों की चर्चा विस्तार से होगी । तदनुसार इन गाथाओं में स्कंधों की चर्चा की जा रही है 1
SR No.009464
Book TitleNiyamsara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2012
Total Pages497
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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