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________________ अजीव अधिकार ( गाथा २० से गाथा ३७ तक ) अथेदानीमजीवाधिकार उच्यते । अणुखंधवियप्पेण दु पोग्गलदव्वं हवेइ दुवियप्पं । खंधा हु छप्पयारा परमाणू चेव दुवियप्पो ।। २० ।। अणुस्कन्ध विकल्पेन तु पुद्गलद्रव्यं भवति द्विविकल्पम् । स्कन्धाः खलु षट्प्रकारा: परमाणुश्चैव द्विविकल्पः ।। २० ।। पुद्गलद्रव्यविकल्पोपन्यासोऽयम् । पुद्गलद्रव्यं तावद् विकल्पद्वयसनाथम्, स्वभावपुद्गलो विभावपुद्गलश्चेति । तत्र स्वभावपुद्गलः परमाणुः, विभावपुद्गलः स्कन्धः । कार्यपरमाणुः कारणपरमाणुरिति स्वभाव पुद्गलो द्विधा भवति । स्कन्धाः षट्प्रकाराः स्युः पृथ्वीजलच्छायाचतुरक्षविषयकर्मप्रायोग्याप्रायोग्यभेदाः । तेषां भेदो वक्ष्यमाणसूत्रेषूच्यते विस्तरेणेति । जीवाधिकार समाप्त होने के उपरान्त अब अजीवाधिकार आरंभ करते हैं । अजीवद्रव्यों में सर्वप्रथम पुद्गलद्रव्य की चर्चा आरंभ करने वाली यह गाथा इस अधिकार की पहली और नियमसार शास्त्र की २०वीं गाथा है; जिसका पद्यानुवाद इसप्रकार है ( हरिगीत ) द्विविध पुद्गल द्रव्य है स्कंध अणु के भेद से । द्विविध परमाणु कहे छह भेद हैं स्कंध के ||२०|| परमाणु और स्कंध के भेद से पुद्गल द्रव्य दो प्रकार का है। इनमें स्कंध छह प्रकार के हैं और परमाणु भी दो प्रकार के होते हैं। इस गाथा के भाव को टीकाकार मुनिराज पद्मप्रभमलधारिदेव इसप्रकार स्पष्ट करते हैं “यह पुद्गलद्रव्य के भेदों का कथन है । स्वभावपुद्गल और विभावपुद्गल के भेद से पुद्गलद्रव्य दो प्रकार का है। उनमें परमाणु स्वभावपुद्गल है और स्कंध विभावपुद्गल है । कार्यपरमाणु और कारणपरमाणु के भेद से स्वभावपुद्गल दो प्रकार है। स्कंध छह प्रकार के होते हैं ह्न १. पृथ्वी, २. जल, ३. छाया, ४. चक्षु को छोड़कर शेष चार इन्द्रियों के विषयभूत स्कंध, ५. कर्मयोग्य स्कंध और ६. कर्म के अयोग्य स्कंध । स्कन्धों के भेद आगे कहे जानेवाले सूत्रों में विस्तार से कहे जायेंगे ।”
SR No.009464
Book TitleNiyamsara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2012
Total Pages497
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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