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________________ ४७७ शुद्धोपयोग अधिकार शास्त्रनामधेयकथनद्वारेण शास्त्रोपसंहारोपन्यासोऽयम् । अत्राचार्याः प्रारब्धस्यान्तगमनत्वात् नितरां कृतार्थतां परिप्राप्य निजभावनानिमित्तमशुभवंचनार्थं नियमसाराभिधानं श्रुतं परमाध्यात्मशास्त्रशतकुशलेन मया कृतम् । किं कृत्वा? पूर्वं ज्ञात्वा अवंचकपरमगुरुप्रसादेन बुद्ध्वेति। कम् ? जिनोपदेशं वीतरागसर्वज्ञमुखारविन्दविनिर्गतपरमोपदेशम् । तं पुन: किं विशिष्टम् ? पूर्वापरदोषनिर्मुक्तं पूर्वापरदोषहेतुभूतसकलमोहरागद्वेषाभावादाप्तमुखविनिर्गतत्वान्निर्दोषमिति । किच्च अस्य खलु निखिलागमार्थसार्थप्रतिपादनसमर्थस्य नियमशब्दसंसूचितविशुद्धमोक्षमार्गस्य अंचितपंचास्तिकायपरिसनाथस्य संचितपंचाचारप्रपंचस्य षड्द्रव्यविचित्रस्य सप्ततत्त्वनवपदार्थगर्भीकृतस्य पंचभावप्रपंचप्रतिपादनपरायणस्य निश्चयप्रतिक्रमणप्रत्याख्यान जिनेन्द्रदेव के पूर्वापर दोष रहित उपदेश को भलीभाँति जानकर यह नियमसार नामक शास्त्र मेरे द्वारा अपनी भावना के निमित्त से किया गया है। इस गाथा के भाव को टीकाकार मुनिराज श्रीपद्मप्रभमलधारिदेव इसप्रकार स्पष्ट करते हैंह्न “यह शास्त्र के नामकथन द्वारा शास्त्र के उपसंहार संबंधी कथन है। यहाँ आचार्य श्री कुन्दकुन्ददेव प्रारंभ किये गये कार्य के सफलतापूर्वक अन्त को प्राप्त हो जाने से अत्यन्त कृतार्थता को पाकर कहते हैं कि सैंकड़ों परम-अध्यात्मशास्त्रों में कुशल मेरे द्वारा अशुभ भावों से बचने के लिए अपनी भावना के निमित्त से यह नियमसार नामक शास्त्र किया गया है। क्या करके यह शास्त्र किया गया है ? अवंचक परमगुरु के प्रसाद से पहले अच्छी तरह जानकर यह शास्त्र लिखा गया है। क्या जानकर? जिनोपदेश को जानकर । वीतराग-सर्वज्ञ भगवान के मुखारविन्द से निकले हुए परम उपदेश को जानकर यह शास्त्र लिखा है। कैसा है यह उपदेश? पूर्वापर दोष से रहित है। पूर्वापरदोष के हेतुभूत सम्पूर्ण मोह-राग-द्वेष के अभाव से जिन्होंने आप्तता प्राप्त की है। उनके मुख से निकला होने से वह जिनोपदेश पूर्णत: निर्दोष है। दूसरी बात यह है कि वस्तुतः समस्त आगम के अर्थ को सार्थकता पूर्वक प्रतिपादन करने में समर्थ, नियम शब्द से संसूचित विशुद्ध मोक्षमार्ग, पंचास्तिकाय के प्रतिपादन में समर्थ, पंचाचार के विस्तृत प्रतिपादन से संचित, छह द्रव्यों से विचित्र, सात और नौ पदार्थों का निरूपण है गर्भ में जिसके, पाँच भावों के विस्तृत प्रतिपादन में परायण, निश्चय
SR No.009464
Book TitleNiyamsara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2012
Total Pages497
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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