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________________ ३४४ नियमसार शुद्धरत्नत्रयभक्तिं कुर्वन्ति । अथ भवभयभीरवः परमनैष्कर्म्यवृत्तयः परमतपोधनाश्च रत्नत्रयभुक्तिं कुर्वन्ति । तेषां परमश्रावकाणां परमतपोधनानां च जिनोत्तमैः प्रज्ञप्ता निर्वृत्तिभक्तिरपुनर्भवपुरंथ्रिकासेवा भवतीति। (मंदाक्रान्ता) सम्यक्त्वेऽस्मिन् भवभयहरे शुद्धबोधे चरित्रे भक्तिं कुर्यादनिशमतुलां यो भवच्छेददक्षाम् । काम-क्रोधाद्यखिल-दुरघवात-निर्मुक्तचेताः भक्तो भक्तो भवति सततं श्रावक: संयमी वा ।।२२०।। मध्य की तीन प्रतिमा में मध्यम श्रावक की हैं और अन्त की दो प्रतिमायें उत्तम श्रावक की हैं।' ह ये सभी श्रावक शुद्ध रत्नत्रय की भक्ति करते हैं। तथा संसारभय से भयभीत, परम नैष्कर्मवृत्तिवाले परम तपोधन भी शुद्ध रत्नत्रय की भक्ति करते हैं। उन परम श्रावकों तथा परम मुनिराजों को, जिनदेवों के द्वारा कही गई और दुबारा संसार में न भटकने देनेवाली यह निर्वृत्ति भक्ति (निर्वाण भक्ति) रूपी स्त्री की सेवा है।" इस गाथा और उसकी टीका में शुद्ध रत्नत्रयरूप निर्वृत्ति भक्ति अर्थात् निर्वाण भक्ति का स्वरूप समझाया गया है। टीका के आरंभिक वाक्य में टीकाकार मुनिराज कहते हैं कि यह रत्नत्रय के स्वरूप का व्याख्यान है; पर अगली पंक्तियों में ही यह स्पष्ट कर देते हैं कि शुद्ध रत्नत्रयरूप परिणामों का भजन-आराधना ही भक्ति है। ___ शुद्ध रत्नत्रय के धारी होने से यह निर्वृत्ति भक्ति मुख्यरूप से मुनिराजों के ही होती है; तथापि आंशिक निर्वृत्ति भक्ति आंशिक संयम को धारण करनेवाले प्रतिमाधारी श्रावकों के भी होती है। यह निर्वृत्ति भक्ति नामक निश्चयभक्ति शुद्ध निर्मल परिणतिरूप है; यही कारण है कि यह सदा विद्यमान रहती है। पर यह निश्चयभक्ति न तो पूर्णत: शुद्धोपयोगरूप ही है और न वचनव्यवहाररूप ही है तथा यह निश्चयभक्ति नमस्कारादि कायिक क्रिया और विकल्पात्मक मानसिक भावरूप भी नहीं है; क्योंकि उक्त शुद्धोपयोग तथा मानसिक विकल्पात्मक स्तुति बोलनेरूप तथा नृत्यादि चेष्टारूप मन-वचन-काय संबंधी व्यवहार भक्ति कभीकभी ही होती है ।।१३४।। १. श्रावक की ग्यारह प्रतिमाओं के नाम क्रमश: इसप्रकार हैं ह्न (१) दर्शन प्रतिमा, (२) व्रत प्रतिमा, (३) सामायिक प्रतिमा, (४) प्रोषधोपवास प्रतिमा, (५) सचित्त त्याग प्रतिमा, (६) रात्रिभोजनत्याग प्रतिमा या दिवामैथुनत्याग प्रतिमा, (७) ब्रह्मचर्य प्रतिमा, (८) आरंभत्याग प्रतिमा, (९) परिग्रहत्याग प्रतिमा, (१०) अनुमतित्याग प्रतिमा और (११) उदिष्टाहारत्याग प्रतिमा ।
SR No.009464
Book TitleNiyamsara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2012
Total Pages497
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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