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________________ ३१२ नियमसार कायाईपरदव्वे थिरभावं परिहरत्तु अप्पाणं । तस्य हवे तसग्गं जो झायड़ णिव्वियप्पेण ।। १२१ ।। कायादिपरद्रव्ये स्थिरभावं परिहृत्यात्मानम् । तस्य भवेत्तनूत्सर्गो यो ध्यायति निर्विकल्पेन ।। १२१ ।। निश्चयकायोत्सर्गस्वरूपाख्यानमेतत् । सादिसनिधनमूर्तविजातीयविभावव्यंजनपर्यायात्मक: स्वस्याकारः काय: । आदिशब्देन क्षेत्रवास्तुकनकरमणीप्रभृतयः । एतेषु सर्वेषु यह ध्यान है, यह ध्येय है, यह ध्याता है और यह ध्यान का फल है ह्र ऐसे विकल्पजालों से जो मुक्त है, उस परमात्मतत्त्व को मैं नमन करता हूँ । जिस योगपरायण योगी को कदाचित् भेदवाद उत्पन्न होता है; उसकी आर्हतमत में मुक्ति होगी या नहीं होगी ह्न यह कौन जानता है ? उक्त छन्दों में यह कहा गया है कि ध्यान, ध्याता और ध्येय और ध्यान का फल ह्न इन विकल्पों से आत्मध्यान नहीं होता, निश्चयप्रायश्चित्त भी नहीं होता; क्योंकि निश्चयप्रायश्चित्त या निश्चयधर्मध्यान तो निर्विकल्पदशा का नाम है। इसलिए अब उक्त विकल्पजाल से मुक्त परमात्मतत्त्व को मैं नमस्कार करता हूँ, उसे ही ध्यान का ध्येय जानता हूँ, मानता हूँ। दूसरे छन्द में भेदविकल्पों में उलझे सन्तों को मुक्ति होगी या नहीं ह्न यह कहकर यह नहीं कहा कि हम नहीं जानते क्या होगा ? अपितु यही कहा है कि यह तो स्पष्ट ही है कि भेदवाद में उलझे लोगों को मुक्ति होनेवाली नहीं; क्योंकि मुक्ति का मार्ग तो निर्विकल्पदशारूप आत्मध्यान ही है । ।।१९३-१९४॥ यद्यपि सम्पूर्ण अधिकार में निश्चयप्रायश्चित्त का स्वरूप ही स्पष्ट किया गया है; तथापि इस अधिकार की इस अन्तिम गाथा में उपसंहार के रूप में एक बार फिर निश्चयप्रायश्चित्त का स्वरूप स्पष्ट करते हैं । गाथा का पद्यानुवाद इसप्रकार है ह्र ( हरिगीत ) जो जीव स्थिरभाव तज कर तनादि परद्रव्य में । करे आतमध्यान कायोत्सर्ग होता है उसे ॥ १२१ ॥ शरीरादि परद्रव्य में स्थिरभाव को छोड़कर जो आत्मा को निर्विकल्परूप से ध्याता है; उसे कायोत्सर्ग होता है। इस गाथा के भाव को टीकाकार मुनिराज श्री पद्मप्रभमलधारिदेव इसप्रकार स्पष्ट करते हैं “यह निश्चयकायोत्सर्ग के स्वरूप का कथन है । सादि - सान्त, मूर्त, विजातीय विभावव्यंजनपर्यायात्मक अपना आकार ही काय (शरीर) है। आदि शब्द से क्षेत्र, घर, सोना, स्त्री आदि लेना चाहिए।
SR No.009464
Book TitleNiyamsara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2012
Total Pages497
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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