SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 311
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ शुद्धनिश्चयप्रायश्चित्ताधिकार ( अनुष्टुभ् ) इदं ध्यानमिदं ध्येयमयं ध्याता फलं च तत् । एभिर्विकल्पजालैर्यन्निर्मुक्तं तन्नमाम्यहम् ।।१९३।। भेदवादाः कदाचित्स्युर्यस्मिन् योगपरायणे । तस्य मुक्तिर्भवेन्नो वा को जानात्यार्हते मते । ।१९४।। ( हरिगीत ) जो अनवरत अद्वैत चेतन निर्विकारी है सदा । उस आत्म को नय की तरंगें स्फुरित होती नहीं । विकल्पों से पार एक अभेद जो शुद्धातमा । हो नमन, वंदन, स्तवन अर भावना हो भव्यतम ॥१९२॥ ३११ जो अनवरतरूप से अर्थात् निरन्तर अखण्ड, अद्वैत चैतन्य के कारण निर्विकार है; उस भगवान आत्मा को नयों का विलास किंचित् मात्र भी स्फुरित नहीं होता; जिसमें समस्त भेदवाद अर्थात् नय संबंधी विकल्प दूर हुए हैं; उस परमपदार्थ को मैं नमन करता हूँ, मैं उसका स्तवन करता हूँ और मैं उसे भलीप्रकार से भाता हूँ । उक्त छन्द में यह कहा गया है कि अखण्ड, अद्वैत और निर्विकारी चेतनतत्त्वरूप भगवान आत्मा में नयों का विलास रंचमात्र भी नहीं है; क्योंकि वह तो नय विकल्पों से पार है। ऐसे भगवान आत्मा को मैं नमन करता हूँ, उसका स्तवन करता हूँ और उसकी भावना भाता हूँ। तात्पर्य यह है कि नमन करने योग्य, स्तवन करने योग्य एवं भावना भाने योग्य एकमात्र निज भगवान आत्मा ही है; क्योंकि उसके आश्रय से ही बंध का अभाव होता है; अन्य किसी को नमन करने से, उसकी वंदना करने से, उसकी भावना भाने से बंध का अभाव नहीं होता, अपितु बंध ही होता है । । १९२ ।। तीसरे व चौथे छन्द का पद्यानुवाद इसप्रकार है ह्र ( हरिगीत यह ध्यान है यह ध्येय है और यह ध्याता अरे । यह ध्यान का फल इसतरह के विकल्पों के जाल से ।। जो मुक्त है श्रद्धेय है अर ध्येय एवं ध्यान है। उस परम आत्मतत्त्व को मम नमन बारंबार है || १९३ || त्रिविध योगों में परायण योगियों को कदाचित् । हो भेद की उलझन अरे बहु विकल्पों का जाल हो । उन योगियों की मुक्ति होगी या नहीं कैसे कहें। कौन जाने क्या कहे ह्न यह समझ में आता नहीं || १९४ ||
SR No.009464
Book TitleNiyamsara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2012
Total Pages497
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy