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________________ ३०० नियमसार उक्किट्ठो जो बोहोणाणं तस्सेव अप्पणो चित्तं । जो धरइ मुणी णिच्चं पायच्छित्तं हवे तस्स ।।११६।। उत्कृष्टो यो बोधो ज्ञानं तस्यैवात्मनश्चित्तम् । यो धरति मुनिर्नित्यं प्रायश्चित्तं भवेत्तस्य ।।११६।। अत्र शुद्धज्ञानस्वीकारवतः प्रायश्चित्तमित्युक्तम् । उत्कृष्टो यो विशिष्टधर्मः स हि परमबोध: इत्यर्थः । बोधोज्ञानं चित्तमित्यनर्थान्तरम् । अत एव तस्यैव परमधर्मिणो जीवस्य प्रायःप्रकर्षण चित्तं । य: परमसंयमी नित्यं तादृशं चित्तं धत्ते, तस्य खलु निश्चयप्रायश्चित्तं भवतीति। क्रोध कषाय को क्षमा से, मान कषाय को मार्दव से, माया कषाय को आर्जव से और लोभ कषाय को शौच से जीतो। इस छन्द में चारों कषायों के जीतने की बात कही है। कहा है कि क्रोध को क्षमा से, मान को मार्दव से, माया को आर्जव से और लोभ को शौचधर्म से जीतना चाहिए।।१८।। विगत गाथा में चारों कषायों को जीतने का उपाय बताकर अब इस गाथा में कहते हैं कि शुद्धज्ञान को स्वीकार करनेवाले को प्रायश्चित्त होता है। गाथा का पद्यानुवाद इसप्रकार है ह्र (हरिगीत) उत्कृष्ट निज अवबोध अथवा ज्ञान अथवा चित्त जो। वह चित्त जो धारण करे वह संत ही प्रायश्चित्त है।।११६|| जो मुनिराज अनंतधर्मवाले उस त्रिकाली ध्रुव भगवान आत्मा का उत्कृष्टबोध, ज्ञान अथवा चित्त को नित्य धारण करते हैं; उन मुनिराज को प्रायश्चित्त होता है। इस गाथा के भाव को टीकाकार मुनिराज श्री पद्मप्रभमलधारिदेव इसप्रकार स्पष्ट करते हैंह्न “यहाँ शुद्धज्ञान को स्वीकार करनेवाले को प्रायश्चित्त है ह ऐसा कहा है। जो विशेष धर्म उत्कृष्ट है, वस्तुत: वही परमबोध है ह ऐसा अर्थ है । बोध, ज्ञान और चित्त अलग-अलग पदार्थ नहीं हैं, एक ही हैं। ऐसा होने से ही उस परमधर्मी जीव को प्रायश्चित्त है अर्थात् उत्कृष्टरूप से चित्त है, ज्ञान है। जो परमसंयमी इसप्रकार के चित्त को धारण करता है, उसे वस्तुतः निश्चयप्रायश्चित्त होता है।" उक्त गाथा में यह कहा गया है कि उत्कृष्ट ज्ञान का नाम ही चित्त है; क्योंकि ज्ञान, बोध और चित्त एकार्थवाची ही हैं। प्रायः शब्द उत्कृष्टता का सूचक है; इसप्रकार उत्कृष्ट ज्ञान ही प्रायश्चित्त है। यही कारण है कि उत्कृष्टज्ञान को धारण करनेवाले परमसंयमी सन्तों के ही निश्चय-प्रायश्चित्त होता है।।११६||
SR No.009464
Book TitleNiyamsara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2012
Total Pages497
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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