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________________ परमार्थप्रतिक्रमणाधिकार २०५ मोत्तूण सल्लभावं णिस्सल्ले जो दु साहु परिणमदि। सो पडिकमणं उच्चइ पडिकमणमओ हवे जम्हा ।।८७।। मुक्त्वा शल्यभावं निःशल्ये यस्तु साधुः परिणमति । स प्रतिक्रमणमुच्यते प्रतिक्रमणमयो भवेद्यस्मात् ।।८७।। इसके बाद एक छन्द टीकाकार मुनिराज पद्मप्रभमलधारिदेव स्वयं लिखते हैं; जिसका पद्यानुवाद इसप्रकार है ह्र ( हरिगीत ) जो मुक्त सब संकल्प शुध निजतत्त्व में अनुरक्त हों। तप मग्न जिनका चित्त नित स्वाध्याय में जो मत्त हों। धन्य हैं जो सन्त गुणमणि युक्त विषय विरक्त हों। वे मुक्तिरूपी सुन्दरी के परम वल्लभ क्यों न हों।।११५|| जो मुनिराज विषयसुख से विरक्त हैं, शुद्धतत्त्व में अनुरक्त हैं, तप में जिनका चित्त लवलीन है, शास्त्रों में जो मत्त (मस्त) हैं, गुणरूपी मणियों के समूह से युक्त हैं और सर्वसंकल्पों से मुक्त हैं; वे मुक्तिसुन्दरी के वल्लभ क्यों न होंगे? होंगे ही होंगे, अवश्य होंगे। इस कलश में वीतरागी सन्तों का स्वरूप स्पष्ट करते हुए कहा गया है कि वीतरागी सन्त पाँच इन्द्रियों के विषय सेवन से पूर्णत: विरक्त रहते हैं, उनके चित्त में पंचेन्द्रिय विषयों के लिए कोई स्थान नहीं है। वे तो उन्हें मधुर विष के समान मानते हैं। वे मुनिराज शुद्धात्मतत्त्व में लीन रहते हैं, उनका चित्त आत्मध्यानरूप तप में लगा रहता है। गुणरूपी मणियों से आकण्ठपूरित वे मुनिराज शास्त्रों के ही पठन-पाठन, अध्ययन में मस्त रहते हैं। सभीप्रकार के संकल्पविकल्पों से मुक्त वे मुनिराज मुक्तिरूपी सुन्दरी के अत्यन्त प्रिय क्यों न होंगे ? तात्पर्य यह है कि उक्त गुणों से युक्त सन्तों का संसार-बंधन से मुक्त होना और मुक्त अवस्था को प्राप्त होना दूर नहीं है, अत्यन्त निकट ही है।।११५|| अब इस गाथा में यह कहते हैं कि माया, मिथ्यात्व और निदान ह्न इन शल्यों से रहित मुनिराज स्वयं प्रतिक्रमणस्वरूप ही हैं। गाथा का पद्यानुवाद इसप्रकार है ह्र (हरिगीत ) छोड़कर त्रिशल्य जो नि:शल्य होकर परिणमे । प्रतिक्रमणमय है इसलिए वह स्वयं ही प्रतिक्रमण है।।८७|| जो साधु शल्यभाव को छोड़कर निःशल्यभाव से परिणमित होता है, उस साधु को प्रतिक्रमण कहा जाता है; क्योंकि वह प्रतिक्रमणमय है।
SR No.009464
Book TitleNiyamsara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2012
Total Pages497
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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