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________________ व्यवहारचारित्राधिकार १७३ (मालिनी) जयति विदितमोक्ष: पद्मपत्रायताक्षः प्रजितदुरितकक्षः प्रास्तकंदर्पपक्षः। पदयुगनतयक्षः तत्त्वविज्ञानदक्षः कृतबुधजनशिक्षः प्रोक्तनिर्वाणदीक्षः ।।९९।। मदननगसुरेशः कान्तकायप्रदेशः ___पदविनतयमीश: प्रास्तकीनाशपाशः। दुरघवनहुताशः कीर्तिसंपूरिताशः। __ जयति जगदधीश: चारुपद्मप्रभेशः ।।१००।। कामदेव के बाण को जिन्होंने जीत लिया है, सभी विद्याओं के जो दीपक (प्रकाशक) हैं, जो सुखरूप से परिणमित हुए हैं, जो पापों के नाश के लिए यमराज हैं, जिन्होंने संसार ताप का नाश किया है, महाराजा जिनके चरणों में नमते हैं, जिन्होंने क्रोध को जीत लिया है और विद्वानों का समुदाय जिनके आगे झुक जाता है, नत हो जाता है; वे अरहंत भगवान जयवंत हैं ।।९८॥ चौथे छन्द का पद्यानुवाद इसप्रकार है तू (हरिगीत) पद्मपत्रों सम नयन दुष्कर्म से जो पार हैं। दक्ष हैं विज्ञान में अर यक्षगण जिनको नमें|| बुधजनों के गुरु एवं मुक्ति जिनकी विदित है। कामनाशक जगप्रकाशक जगत में जयवंत हैं।।९९|| जिनका मोक्षसर्वविदित है, जिनके नेत्र कमल पत्र के समान बड़े-बड़े हैं, पाप की भूमिका को जिन्होंने पार कर लिया है, कामदेव के पक्ष का जिन्होंने नाश किया है, यक्ष जिनके चरण युगल में नमस्कार करते हैं, तत्त्वविज्ञान में जो दक्ष हैं, बुधजनों को जिन्होंने शिक्षा दी है और निर्वाण दीक्षा का जिन्होंने उच्चारण किया है; वे अरहंत जिन जयवंत हैं।।९९।। पाँचवें छन्द का पद्यानुवाद इसप्रकार है ह्र (हरिगीत) मदनगज को वजधर पर मदन सम सौन्दर्य है। मुनिगण नमें नित चरण में यमराज नाशक शौर्य है। पापवन को अनल जिनकी कीर्ति दशदिश व्याप्त है। जगतपति जिन पद्मप्रभ नित जगत में जयवंत हैं॥१००||
SR No.009464
Book TitleNiyamsara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2012
Total Pages497
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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