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________________ १५८ नियमसार च कायविशुद्धिहेतुः कमण्डलुः, संयमोपकरणहेतुः पिच्छः । एतेषां ग्रहणविसर्गयोः समयसमुद्भवप्रयत्नपरिणामविशुद्धिरेव हि आदाननिक्षेपणसमितिरिति निर्दिष्टेति । (मालिनी) समितिषु समितीयं राजते सोत्तमानां __ परमजिनमुनीनां संहतौ क्षांतिमैत्री। त्वमपि कुरु मन:पंकेरुहे भव्य नित्यं भवसि हि परमश्रीकामिनीकांतकांतः ।।८७।। पुस्तक ज्ञान का उपकरण है, कायविशुद्धिभूत शौच का उपकरण कमण्डलु है और संयम का उपकरण पीछी है। इन उपकरणों को उठाते-रखते समय उत्पन्न होनेवाली प्रयत्नपरिणामरूप विशुद्धि ही आदाननिक्षेपणसमिति है ह ऐसा शास्त्रों में कहा है।" उक्त सम्पूर्ण कथन का सार यह है कि जब मुनिराज छठवें गुणस्थान में होते हैं; तब उनके पास पीछी, कमण्डलु और शास्त्र होते हैं, हो सकते हैं; क्योंकि पीछी के बिना अहिंसक आचरण, कमण्डल के बिना शौचादि की शुद्धि और शास्त्र के बिना स्वाध्याय संभव नहीं है। इन तीनों को उपकरण कहा गया है। जब ये उपकरण उनके पास होंगे तो इनके उठाने-रखने में प्रमादवश या असावधानी के कारण किसी भी प्रकार के जीवों का घात न हो जावे ह इस बात की सावधानी रखना ही आदाननिक्षेपणसमिति है।।६४।। इस ६४वीं गाथा को पूर्ण करते हुए टीकाकार मुनिराज पद्मप्रभमलधारिदेव एक छन्द लिखते हैं; जिसका पद्यानुवाद इसप्रकार है ह्र (हरिगीत) उत्तम परमजिन मुनि के सुख-शान्ति अर मैत्री सहित। आदाननिक्षेपण समिति सब समितियों में शोभती।। हे भव्यजन! तुम सदा ही इस समिति को धारण करो। जिससे तुम्हें भी प्राप्त हो प्रियतम परम श्री कामिनी ।।८७|| उत्तम परमजिन मुनियों की यह आदाननिक्षेपण समिति सभी समितियों में शोभायमान होती है और इस समिति के साथ में उन मुनिराजों के शान्ति और मैत्री भी होते ही हैं। हे भव्यजनो! तुम भी अपने हृदयकमल में उक्त समिति को धारण करो कि जिससे तुम भी परमश्री कामिनी के कंत हो जावोगे। इस कलश में यही प्रेरणा दी गई है कि आप भी इस समिति को धारण करो, इससे तुम्हें भी मुक्तिवधू प्राप्त हो जावेगी ।।८७।।
SR No.009464
Book TitleNiyamsara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2012
Total Pages497
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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