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________________ १०४ नियमसार क्षायिकभावस्य क्षायिकसम्यक्त्वं, यथाख्यातचारित्रं, केवलज्ञानं केवलदर्शनं च, अन्तरायकर्मक्षयसमुपजनितदानलाभभोगोपभोगवीर्याणि चेति । क्षायोपशमिकभावस्य मतिश्रुतावधिमन:पर्ययज्ञानानि चत्वारि, कुमतिकुश्रुतविभंगभेदादज्ञानानि त्रीणि, चक्षुरचक्षुरवधिदर्शनभेदाद्दर्शनानि त्रीणि, कालकरणोपदेशोपशमप्रायोग्यताभेदाल्लब्धय: पंच, वेदकसम्यक्त्वं, वेदकचारित्रं, संयमासंयमपरिणतिश्चेति । ___ औदयिकभावस्य नारकतिर्यङ्मनुष्यदेवभेदाद् गतयश्चतस्रः, क्रोधमानमायालोभभेदात् कषायाश्चत्वारः, स्त्रीपुंनपुंसकभेदाल्लिंगानि त्रीणि, सामान्यसंग्रहनयापेक्षया मिथ्यादर्शनमेकम्, अज्ञानं चैकम्, असंयमता चैका, असिद्धत्वं चैकम्, शुक्लपद्मपीतकापोतनीलकृष्णभेदाल्लेश्या: षट् च भवन्ति। पारिणामिकस्य जीवत्वपारिणामिकः, भव्यत्वपारिणामिकः, अभव्यत्वपारिणामिकः इति त्रिभेदाः । अथायं जीवत्वपारिणामिकभावो भव्याभव्यानां सदृशः, भव्यत्वपारिणामिकभावो भव्यानामेव भवति, अभव्यत्वपारिणामिकभावोऽभव्यानामेव भवति । इति पंचमभावप्रपंचः। पंचानां भावानां मध्ये क्षायिकभाव: कार्यसमयसारस्वरूप: स त्रैलोक्यप्रक्षोभहेतुभूत क्षायिकसम्यक्त्व, यथाख्यातचारित्र, केवलज्ञान, केवलदर्शन और अन्तराय कर्म के क्षय से उत्पन्न होनेवाले क्षायिकदान, क्षायिकलाभ, क्षायिकभोग, क्षायिक-उपभोग और क्षायिकवीर्य ह्न इसप्रकार क्षायिकभाव नौ प्रकार के हैं। मति, श्रुत, अवधि और मनःपर्यय ह्न ये चार प्रकार के ज्ञान; चक्षुदर्शन, अचक्षुदर्शन और अवधिदर्शन ह ये तीन प्रकार के दर्शन; काललब्धि, करणलब्धि, उपदेशलब्धि, उपशमलब्धि और प्रायोग्य-लब्धि के भेद से पाँच लब्धियाँ और वेदकसम्यक्त्व, वेदकचारित्र और संयमासंयमपरिणति ह इसप्रकार क्षायोपशमिकभाव अठारह प्रकार के हैं। नरकगति, तिर्यंचगति, मनुष्यगति और देवगति ह्न ये चार गतियाँ; क्रोधकषाय, मान कषाय, मायाकषाय और लोभकषाय ह्न ये चार कषायें; स्त्रीलिंग, पुल्लिंग और नपुंसकलिंग ह्न ये तीन लिंग; सामान्यसंग्रहनय की अपेक्षा से मिथ्यादर्शन एक, अज्ञान एक और असंयम एक, असिद्धत्व एक; शुक्ललेश्या, पद्मलेश्या, पीतलेश्या, कापोतलेश्या, नीललेश्या और कृष्णलेश्या ह्न ये छह लेश्यायें ह्न इसप्रकार औदयिकभाव इक्कीस प्रकार के होते हैं। जीवत्व, भव्यत्व और अभव्यत्व ह्न इसप्रकार पारिणामिकभाव तीन प्रकार के हैं। जीवत्वपारिणामिकभाव भव्यों तथा अभव्यों ह्न सभी के होता है; भव्यत्वपारिणामिक भाव भव्यों के ही होता है और अभव्यत्वपारिणामिकभाव अभव्यों के ही होता है। इसप्रकार पाँच भावों का कथन किया। पाँच भावों में क्षायिकभाव कार्यसमयसारस्वरूप है; वह त्रिलोक में प्रक्षोभ के हेतुभूत
SR No.009464
Book TitleNiyamsara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2012
Total Pages497
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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