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________________ ७२ णमोकार महामंत्र : एक अनुशीलन उत्तर मिलता है कि कल ला देंगे, पर उनका कल कभी आता ही नहीं है, आज एक माह हो गया। अत: आज मैं स्कूल ही नहीं गया हूँ।" ___ पुचकारते हुए सेठ बोला-"बेटा चिन्ता की कोई बात नहीं। अपना वो नालायक पप्पू है न । वह हर माह नई ड्रेस सिलाता है और पुरानी फेंक देता है । पुस्तकें भी हर माह फाड़ता है और नई खरीद लाता है। बहुत-सी ड्रेसें और पुस्तकें पड़ी हैं । ले जावो।" __अब जरा विचार कीजिए, सेठ जिसकी भगवान जैसी स्तुति करता है, उसे अपने नालायक बेटे के उतारन के कपड़े और फटी पुस्तकें देने का भाव आता है और अपने उस नालायक बेटे को करोड़ों की सम्पत्ति दे जाने का पक्का विचार है। कभी स्वप्न में भी यह विचार नहीं आया कि थोड़ी-बहुत किसी और को भी दे दूं। ___ अब आप ही बताइये कि जगत में अपने की कीमत है या अच्छे की, सच्चे की? अच्छा और सच्चा तो पड़ौसी का बेटा है, पर वह अपना नहीं; अत: उसके प्रति राग भी सीमित ही है, असीम नहीं। अपना बेटा यद्यपि अच्छा भी नहीं है, सच्चा भी नहीं है; पर अपना है; अपना होने से उससे राग भी असीम है, अनन्त है। इससे सिद्ध होता है कि अपनापन ही सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है। आजतक इस आत्मा ने देहादि पर-पदार्थों में ही अपनापन मान रखा है । अत: उन्हीं की सेवा में सम्पूर्णत: समर्पित है। निज भगवान आत्मा में एक क्षण को भी अपनापन नहीं आया है। यही कारण है कि उसकी अनन्त उपेक्षा हो रही है । देह की संभाल में हम चौबीसों घंटे समर्पित हैं और भगवान आत्मा के लिए हमारे पास सही मायनों में एक क्षण भी नहीं है। भगवान आत्मा अनन्त उपेक्षा का शिकार होकर सोतेला बेटा बनकर रह गया है। ___ हम इस जड़ नश्वर शरीर के प्रति जितने सतर्क रहते हैं कि आत्मा के प्रति हमारी सतर्कता उसके सहस्रांश भी दिखाई नहीं देती।
SR No.009460
Book TitleNamokar Mahamantra Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla, Yashpal Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2009
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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