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________________ अपने में अपनापन भाई, हम क्या कह रहे हैं, वस्तु का स्वरूप ही ऐसा है। एक करोड़पति सेठ था। उसका एक इकलौता बेटा था। "कैसा?" "जैसे कि करोड़पतियों के होते हैं, सातों व्यसनों में पारंगत।" उसके पड़ोस में एक गरीब व्यक्ति रहता था। उसका भी एक बेटा था। "कैसा?" "जैसा कि सेठ अपने बेटे को चाहता था, सर्वगुणसम्पन्न, पढ़नेलिखने में होशियार, व्यसनों से दूर, सदाचारी, विनयशील।" सेठ रोज सुबह उठता तो पड़ोसी के बेटे की भगवान जैसी स्तुति करता और अपने बेटे को हजार गालियाँ देता। कहता- "देखो वह कितना होशियार है, प्रतिदिन प्रात:काल मन्दिर जाता है, समय पर सोकर उठता है और एक तू है कि अभी तक सो रहा है । अरे नालायक मेरे घर में पैदा हो गया है, सो गुलछर्रे उड़ा रहा है, कहीं और पैदा होता तो भूखों मरता, भूखों..... ' अरे अभागे .......... |" ___ बीच में ही बात काटते हुए पुत्र कहता-"पिताजी, और चाहे जो कुछ कहो, पर अभागा नहीं कह सकते।" "क्यों?" "क्योंकि, जिसे आप जैसा कमाऊ बाप मिला हो, वह अभागा कैसे हो सकता है? अभागे तो आप हैं, जिसे मुझ जैसा गमाऊ बेटा मिला है।" एक दिन पड़ौसी का बेटा स्कूल नहीं गया। उसे घर पर देखकर सेठ ने कहा-"बेटा! आज स्कूल क्यों नहीं गये?" - बच्चे ने उत्तर दिया-"मास्टरजी कहते हैं कि स्कूल में ड्रेस पहिनकर आओ और पुस्तकें लेकर आओ। मैं पापा से कहता हूँ तो
SR No.009460
Book TitleNamokar Mahamantra Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla, Yashpal Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2009
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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