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________________ जीवन-मरण और सुख-दुःख ४१ एक डंडा ही पर्याप्त है। डंडा भी मारने की आवश्यकता नहीं है, दिखाना ही पर्याप्त है; क्योंकि डंडा दिखाने मात्र से ही उसे रुपये प्राप्त हो जायेंगे । इसप्रकार मेरा शस्त्रों से मरना तो बहुत दूर, डंडे से पिटना भी संभव नहीं है; किन्तु यदि किसी हथियार वाले को लूटना हो तो लुटेरों को हथियारों से सुसज्जित होकर ही आना होगा। लुटेरे उसके रुपये तो लूटेंगे ही, जान से भी मार सकते हैं; क्योंकि उससे उन्हें सदा खतरा बना रहेगा । इसप्रकार यह सुनिश्चित है कि हथियार सुरक्षा के साधन नहीं, मौत के ही सौदागर हैं । फिर भी कुछ लोग कहते हैं कि हमारे हथियारों के भय से हम पर कोई आक्रमण करने की हिम्मत ही नहीं करेगा, अतः हम सुरक्षित रहेंगे। ऐसा सोचने वालों से मेरा कहना यह है कि यदि यह मान भी लिया जाय कि तुम्हारे शस्त्रों के भय से तुम पर कोई आक्रमण नहीं करेगा; पर जब तुम स्वयं बीमार होकर मरोगे, तब क्या होगा ? इस आशंका से आकुल-व्याकुल इस जगत ने अनेक प्रकार की औषधियों का निर्माण किया है । 'कोई मार न दें' - इस आशंका से एक प्रकार की गोलियाँ (अणुबम) बनाई हैं तो 'बीमारियों से स्वयं ही न मर जावे' – इस भय से दूसरे प्रकार की गोलियाँ (दवाइयाँ) बनाई हैं। जीवन रक्षक (एन्टीबाइटिक्स) दवाइयों का उत्पादन इसकी इसी आकांक्षा का परिणाम है। इसप्रकार यह स्वयं को गोलियों के बल पर मरण भय से मुक्त करना चाहता है, पर आजतक तो कोई सदेह अमर हो नहीं पाया है। लाखों लोगों को दम तोड़ते हम प्रतिदिन देखते ही हैं। इसीप्रकार सुखी रहने और दुःख दूर करने के लिए भी इसने दर्दनाशक दवाओं का निर्माण किया है । खाना-पीना, उठना-बैठना, सोना, सभी प्रकार के भोगों को भोगना एवं भोगसामग्री इकट्ठी करना भी इसकी इसी आकांक्षा के परिणाम हैं। पर इतना सब-कुछ कर लेने के बाद भी न तो यह अमर ही हो सका है और न ही सुखी ही; क्योंकि अमर और सुखी होने का जो रास्ता इस जगत
SR No.009460
Book TitleNamokar Mahamantra Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla, Yashpal Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2009
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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