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________________ णमोकार महामंत्र : एक अनुशीलन ३४ दर्शन भी खुदा के नहीं, खुदा की तस्वीर के होंगे। हमें किसी की तस्वीर के दर्शन नहीं करना है, हमें किसी अन्य खुदा के भी दर्शन नहीं करने हैं। हम तो स्वयं खुदा हैं न ? कम्बख्ती इस रूह की ऐसी है कि खुद खुदा होकर भी बन्दा नजर आता है । अरे भाई, हम किसी के बन्दा नहीं, खुद खुदा हैं। हम किसी के भक्त नहीं, वरन् स्वयं भगवान हैं। हमें किसी अन्य खुदा के दर्शन नहीं करना हैं; स्वयं को ही जानना-पहिचानना है । स्वयं को जानने के लिए, देखने के लिए गर्दन झुकाने की आवश्यकता नहीं होती है, अपितु ज्ञान पर्याय को त्रिकाली ध्रुव में लगाना होता है, अपने भगवान आत्मा को ज्ञान का ज्ञेय बनाना होता है। यही कारण है कि हमारी जो ध्यान की मुद्रा है, उसमें हमारी गर्दन झुकी नहीं रहती है, अपितु एकदम सीधी रहती है और सीधी रहनी चाहिए। बहुत से लोग कहते हैं कि ध्यान में हमें अपनी नाक को देखना चाहिए, नाक की नोक देखना चाहिए। कोई कहते हैं कि आते-आते श्वास-प्रश्वास को देखना चाहिए; पर इसमें तो नाक के दर्शन होंगे; आत्मा के नहीं । धर्म तो आत्मा के दर्शन का नाम है; नाक के दर्शन या श्वास-प्रश्वास के दर्शन का नाम नहीं । इस पर यदि कोई कहे कि जैनदर्शन में भी तो ध्यान में नाशाग्रदृष्टि की बात कही गई है। हाँ, हाँ, नाशाग्रदृष्टि की बात कही गई है, पर नाक के दर्शन की तो नहीं कही। नाशाग्रदृष्टि और नाक के दर्शन में बहुत अन्तर है। खुली आँख परदर्शन की निशानी है और बन्द आँख सो जाने की, प्रमाद की निशानी है । न परदर्शन में धर्म है और न प्रमाद में । धर्म तो आत्मदर्शन का नाम है, धर्म तो अप्रमाद दशा का नाम है। नाशाग्रदृष्टि आत्मदर्शन और अप्रमाद की प्रतीक है। क्यों और कैसे ? यदि हमें आत्मा का दर्शन करना है तो प्रमाद छोड़कर उपयोग को आत्मसन्मुख करना होगा। चूँकि आत्मदर्शन इन आँखों से संभव नहीं है; अतः
SR No.009460
Book TitleNamokar Mahamantra Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla, Yashpal Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2009
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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