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________________ णमोकार महामंत्र : एक अनुशीलन कुन्दकुन्दशतक में संकलित ये दूसरी व तीसरी गाथाएँ आचार्य कुन्दकुन्द के अष्टपाहुड़ के मोक्षपाहुड़ की १०४ वीं एवं १०५वीं गाथाएँ हैं। आचार्य कुन्दकुन्द की ये गाथाएँ अपने आप में महामंत्र हैं। इनमें सरलसुबोध भाषा में अत्यन्त महत्त्वपूर्ण बात कही गई है। उक्त गाथाओं की पहली ही पंक्ति में पंचपरमेष्ठी का स्मरण किया गया है। हमारे सर्वाधिक प्रिय महामंत्र णमोकार मंत्र में भी पंचपरमेष्ठी को ही नमस्कार किया है। ____ आचार्य कुन्दकुन्द की उक्त गाथाओं में भी णमोकार मंत्र के समान बिना किसी मांग के पंचपरमेष्ठी का स्मरण किया गया है। इसलिए मैं कहता हूँ कि यह गाथा आचार्य कुंदकुंद का णमोकार महामंत्र है। ___ आचार्य कुन्दकुन्द जिन-अध्यात्म परम्परा के प्रतिष्ठापक आचार्य हैं। उनके ग्रन्थों में जिन-अध्यात्म का अत्यन्त विशुद्ध प्रतिपादन है। उनकी लौहलेखनी से प्रसूत अन्तस्तत्त्व केतलस्पर्शी प्रतिपादक समयसारादि ग्रन्थराज जिन-अध्यात्म के क्षेत्र में विगत दो हजार वर्षों से प्रकाशस्तम्भ का कार्य कर रहे हैं। यद्यपि णमोकार महामंत्र में कुछ मांगा नहीं गया है, पर उसके बाद आने वाली पंक्तियों में अरहन्तादिक की शरण में जाने की बात अवश्य कही गई है। कहा गया है - चत्तारि सरणं पव्वज्जामि, अरहंते सरणं पव्वजामि, सिद्धे सरणं पव्वजामि, साहू सरणं पव्वजामि, केवलिपण्णत्तं धम्मं सरणं पव्वजामि। उक्त पंक्तियों में अरिहन्त, सिद्ध, साधु और केवलीभगवान द्वारा कहे गये धर्म की शरण में जाने की बात कही गई है। यहाँ शरण में जाने की बात के माध्यम से शरण की मांग तो कर ही ली है, पर आचार्य कुंदकुंद ने तो निजभगवान आत्मा की शरण में जाने की ही बात की है। "तम्हा आदा हु मे सरणम्" कहकर वे निज आत्मा की शरण में जाने की ही बात करते हैं।
SR No.009460
Book TitleNamokar Mahamantra Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla, Yashpal Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2009
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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