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________________ अयोध्या समस्या पर वार्ता १०९ बुद्धिमान, समझदार एवं शान्तिप्रिय होते हैं। यदि वे चाहें तो मिल-बैठकर इस मुद्दे का हल निकाल सकते हैं। प्रश्न - हम लोकतंत्र में रहते हैं। लोकतंत्र में जो अल्पसंख्यक हैं, उनका आदर होता है। उन्हें आदर देने की जिम्मेदारी बहुसंख्यकों की है। तो क्या आप सोचते हैं कि आज का बहुसंख्यक इस आदर को देने को तैयार है ? डॉ. साहब - उसे तैयार होना चाहिए। मेरी भावना तो यह है कि ८७ करोड़ जो भारतवासी हैं, उनकी भावनाओं का मन्दिर बने, सबकी भावना उस मन्दिर में समाहित हो। उस मन्दिर के लिए जो कारसेवा हो - उसमें हिन्दू, मुस्लिम, जैन - सभी धर्म के लोग हों। जैनियों के तो अधिकांश तीर्थंकरों का जन्म अयोध्या में हुआ है और उनके मन्दिर भी वहाँ हैं। अब जो मन्दिर बने, वह सभी धर्मावलंबियों का बने तथा प्रत्येक भारतीय आत्मा की प्रसन्नता का काम हो । राम ने दुष्प्रवृत्तियों का निषेध किया था और दुष्ट रावण को जीता था, परन्तु लंकावासियों को अपने राज्य से बाहर नहीं किया, अपितु अपने साम्राज्य में उन्हें महत्त्वपूर्ण स्थान भी दिया था। वैसा ही कार्य आज हम सब मिलकर अयोध्या में करें – मेरी यह भावना है। - आस्था का सम्बन्ध भक्ति और प्रेम से जुड़ा है, इसलिए राम के विशाल हृदय के अनुसार हम सबको साथ लेकर चलें। राम के नाम पर देश में दंगेफसाद हों, देश अनेक भागों में बँटे - यह न तो राम के लिए और न राम के भक्तों के लिए सौभाग्य की बात होगी कि देश में एकता रहे और उस एकता को हम भारतीय संस्कृति के नाम से दुनिया के सामने रख सकें। प्रश्न - राम जन-जन के रोम-रोम में समाए हुए हैं। तो क्या वे राम किसी पत्थर की इमारत के मोहताज हैं ? डॉ. साहब आपका कहना तो सही है । जब हमारा एक मजदूर कुल्हाड़ी चलाता है, तो उसके मुँह से 'हे राम' शब्द निकलता है। राम कणकण में व्याप्त हैं, हरेक मन में व्याप्त हैं। फिर भी यदि यह प्रश्न खड़ा हो ही गया है तो हम उसे यह कहकर नहीं टाल सकते कि राम सबके हृदय में बसे -
SR No.009460
Book TitleNamokar Mahamantra Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla, Yashpal Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2009
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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