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________________ १६ नक्शों में दशकरण (जीव जीता-कर्म हारा) • सत्तास्थित कर्मों की यथाकाल उदय व उदीरणा हो सकती है। • असंख्यात आत्मप्रदेशों में अनंतानंत कर्म-परमाणु विद्यमान हैं; तथापि आत्मा उसी समय स्वभाव से ही उन परमाणुओं से अस्पर्शित है। • कर्म का बंध होते ही कर्म की सत्ता (सत्त्व, अस्तित्व) बनती हैं, उसे ही कर्म का सत्त्वकरण कहते हैं । • अनेक समयों में बँधे हुए कर्मों का विवक्षित काल तक जीव के प्रदेशों के साथ अस्तित्व होने का नाम सत्त्व है। • सिद्धों को छोड़कर सब जीवों में कर्म की सत्ता पाई जाती है। • अरहंत परमात्मा के चार अघाति कर्मों की सत्ता रहती है। • अरहंतों के भी असाता वेदनीय कर्म की सत्ता रहती है। • कर्मबंध से फल प्राप्ति के बीच की अवस्था सत्ता कहलाती है। • जीव के साथ सत्ता में स्थित कर्म, पदार्थों के संयोगों में अथवा सुख-दुःख देने में निमित्त नहीं होते। इस कारण सत्त्व में स्थित कर्म को मिट्टी के ढेले के समान कहते हैं। • सत्त्वस्थित कर्म, कर्मोदय के समय में फल देने में निमित्त होते हैं। • सत्त्व, बंध का कार्य है और कर्म का सत्त्व, उदय का कारण है। • जैसी कर्म की सत्ता है, वैसा ही जीव को फल मिलने का नियम नहीं है; क्योंकि कर्म का उदयकाल आने के पहले सत्त्वस्थित कर्म में परिवर्तन होने की संभावना रहती है। • बँधकरण के जैसे प्रकृतिबंध आदि चार भेद हैं, वैसे ही सत्त्वकरण के भी प्रकृतिसत्त्व, प्रदेशसत्व, स्थितिसत्त्व, अनुभागसत्त्व - ये चार भेद हैं। • तिर्यंचों में तीर्थंकर प्रकृति की सत्ता नहीं होती । • एक जीव के भुज्यमान और बद्धमान दो आयु कर्म की सत्ता रह सकती है। • नरकों में देवायु का सत्त्व नहीं रहता । • देवों में नरकायु का सत्त्व नहीं रहता । Khata Annanji Adhyatmik Duskaran Book (९) ३-४ उदय - उदीरणा • कर्म की स्थिति पूरी होते ही कर्मों के फल देने को उदय कहते हैं। • अनेक समयों में बंधे हुये कर्म, एक समय में उदय में आते हैं। • सुनिश्चित क्रम से कर्म, जीव को फल देते हैं; उसे उदय कहते हैं। तत्पश्चात् कर्म, कार्मणवर्गणा आदि रूप परिणमते हैं। • उदयावली में स्थित कर्म के निषेकों की स्थिति, क्रम से पूर्ण होती रहती है और निषेक फल देते रहते हैं, उसे उदय कहते हैं। यह उदीरणा से उदयावली में आया हुआ (२०००) कर्म ३४ से १८ तक उदयावली का उपरिम भार .......... ३४ उदयावली 220248200 • यहाँ छठे समय से लेकर १७वें समय पर्यंत के एक आवली काल को उदयावली कहा है। • माना कि ३४वें समय में सत्त्वस्थित १ लाख कर्म - परमाणु हैं । उनमें से २००० कर्मपरमाणु उदयावली में आकर मिलते हैं और अपना यथायोग्य फल देते हैं। अर्थात् कर्मों की स्थिति पूर्ण होने के पहले ही वे उदय में आ जाते हैं। इस प्रक्रिया को उदीरणा कहते हैं। जिन कर्म - परमाणुओं / निषेकों की उदीरणा हो गयी है; वे उदयावली में आकर मिलते हैं, उदयावली के बाहर नहीं । ५ समय की आबाधा • उदाहरण में उदीरणा के कारण दीर्घकाल के बाद उदय आने योग्य २००० कर्मपरमाणु, जीव के विशेष परिणामों से उदयावली में आकर मिल गए हैं; इसे ही उदीरणा कहते हैं। • अपक्व पाचन को (अकालपाक को) उदीरणा कहते हैं। • उदीरणा के प्रभाव से कर्म-निर्जरा में विशेषता आ जाती है। • एक आवली काल पर्यंत निषेकों का लगातार उदय आता रहता है, उसे उदयावली कहते हैं। 2000vw
SR No.009459
Book TitleNaksho me Dashkaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2013
Total Pages17
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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