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________________ चेहरे जैसे बाल और बालों जैसा चेहरा हो जावे तो क्या हो? तात्पर्य यह है कि जगत में कुछ भी अच्छा-बुरा नहीं है। अच्छे-बुरे की कल्पना हम स्वयं अपने रागानुसार ही करते हैं। इस जगत में न अच्छे की कीमत है न सच्चे की, अपनापन ही सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है; क्योंकि सर्वस्वसमर्पण अपनों के प्रति ही होता है। यही कारण है कि मुक्ति के मार्ग में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण श्रद्धा गुण है, श्रद्धा गुण की निर्मल पर्याय सम्यग्दर्शन है। पर और पर्याय से भिन्न निज भगवान आत्मा में अपनापन स्थापित करना ही सम्यग्दर्शन है, निज भगवान आत्मा को निज जानना ही सम्यग्ज्ञान है और निज भगवान आत्मा में ही जमना-रमना सम्यक्-चारित्र है। यहाँ आप कह सकते हैं कि विद्वानों का काम तो सच्चाई और अच्छाई की कीमत बताना है और आप कह रहे हैं कि इस जगत में न सच्चाई की कीमत है और न अच्छाई की। भाई, हम क्या कह रहे हैं, वस्तु का स्वरूप ही ऐसा है। एक करोडपति सेठ था। उसका एक इकलौता बेटा था। "कैसा?" "जैसे कि करोड़पतियों के होते हैं, सातों व्यसनों में पारंगत।" अपने में अपनापन २७
SR No.009457
Book TitleMain Swayam Bhagawan Hu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla, Yashpal Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2009
Total Pages70
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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