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________________ ૨૮ जिनधर्म-विवेचन फूल, बगीचे आदि भी उसने ही बनाए तो गन्दे स्थान, कीचड़ आदि भी तो भगवान ने ही बनाये हैं; क्योंकि भगवान के अलावा इन्हें कौन बनाएगा? सब काम एक भगवान का ही तो है। यहाँ यह प्रश्न स्वाभाविक है कि इन वस्तुओं की निर्मिति में अर्थात रचना के लिए मूल कच्चा माल भगवान को कहाँ से मिला? उन्होंने कहाँ से मँगवाया? किसने दिया? आदि प्रश्न खड़े होते हैं। उत्तर में किसी व्यक्ति का नाम तो बताया नहीं जा सकता; क्योंकि वह कहाँ से आया? उसको किसने उत्पन्न किया? आदि अनेक आपत्तियाँ/ प्रश्न उपस्थित होते हैं। इसलिए ऐसा कहा जा सकता है कि 'नदी, पहाड़, शरीर आदि के लिए कच्चा माल, सूक्ष्म रीति से पहले से ही सर्वत्र था अथवा भगवान के शरीर में वे सर्व अत्यन्त-अत्यन्त सूक्ष्मरूप में विद्यमान थे। उनको भगवान ने ही चाहे जैसा रूप अपनी शक्ति से दिया। इस कथन से अचेतन, रूपी, जड़ पदार्थ, जिन्हें जिनधर्म में पुद्गलद्रव्य कहा है, वे पदार्थ भी अनादि से ही सिद्ध हो जाते हैं। पर्वत, नदी, बड़े-बड़े पेड़ इत्यादि के लिए कच्चा माल इधर से उधर अथवा उधर से इधर भेजना-मँगवाना तो पड़ा ही होगा। इसका अर्थ यह भी स्पष्ट होता है कि इन वस्तुओं का आना-जाना अथवा जाना-आना हुआ होगा। इससे धर्मद्रव्य एवं अधर्मद्रव्यों के कार्य (गति-स्थिति) की भी सिद्धि होती है। ___ हाँ, इन द्रव्यों को नाम आप दूसरा भी दे सकते हैं। हमें नाम से मतलब नहीं है। हमें तो काम या स्वरूप से मतलब है। हमें द्रव्यों का अनादिपना तथा अनन्तपना अपेक्षित है। आपके प्रश्न में यह विश्व कब तक रहेगा?' यह भी पूँछा गया है। उत्तर स्पष्ट है कि यह विश्व अनन्तकाल पर्यंत रहेगा। विश्व का कभी नाश नहीं होगा। जीवादि छह द्रव्य अनादि-अनन्त हैं तो छह द्रव्यों विश्व-विवेचन के समूहरूप यह विश्व भी अनादि-अनन्त ही है। जिन द्रव्यों के कारण से विश्व बना है, वे द्रव्य नष्ट नहीं होंगे तो विश्व के नाश का भी कोई कारण शेष नहीं रहता है; इसलिए विश्व अनादि तो है ही, नियम से अनन्तकाल तक भी बना ही रहेगा। अनेक बार इन दिनों विश्व के नाश की चर्चा भी समाचार पत्रों में पढ़ने को मिलती रहती है। विश्व के नाश के विषय को लेकर वैज्ञानिकों के नये-नये विचार भी सुनने-समझने को मिलते हैं। यदि वास्तविकता को देखा जाए तो जिनधर्म का सामान्य प्राथमिक ज्ञान भी हो तो विश्व के नाश होने या न होने की बात सहज और स्पष्टरूप से समझ में आ सकती है। विश्व कहाँ से आया? - इस प्रश्न का उत्तर इतना ही है कि लोक में अनादि काल से छह द्रव्य हैं। अलोक में मात्र आकाशद्रव्य है। ये सभी अपनी-अपनी जगह पर ही थे, हैं और रहेंगे। ऐसी अवस्था में विश्व कहाँ से आया - यह प्रश्न ही उपस्थित नहीं होता अर्थात् विश्व जहाँ है, सदा से वहीं है। आज से करीब ३० वर्ष पूर्व वैज्ञानिक कहते थे कि कोई स्कायलैब गिरनेवाला है और उससे जगत में बहुत बड़ा विनाशकारी कार्य होनेवाला है - ऐसी चर्चा थी; तथापि वह चर्चा मात्र चर्चा ही रही, कुछ विनाशकारी कार्य नहीं हुआ। वास्तविकता में देखा जाए तो सर्वज्ञ भगवान के द्वारा कथित तत्त्व का सामान्य तथा प्राथमिक ज्ञान भी इस जीव को सुखदाता सिद्ध होता है; इसलिए जिनधर्म का अध्ययन करना अत्यन्त उपयोगी है, इतना ही हम यहाँ बताना चाहते हैं। दुनिया में जो-जो कार्य होता है, उसे किसी अन्य व्यक्ति ने बनाया ही होता है - यह तर्क यथार्थ नहीं है; क्योंकि ऐसा प्रत्यक्ष देखने में नहीं आता । उदाहरणार्थ - मोर अत्यन्त सुन्दर होता है, जबकि मोरनी उतनी सुन्दर नहीं होती। सामान्यरूप से निसर्ग-प्रकृति में यह जानने को मिलता (20)
SR No.009455
Book TitleJin Dharm Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain, Rakesh Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages105
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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