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________________ हाता जिनधर्म-विवेचन १७. प्रश्न - कुल मिलाकर तीन लोक में अनन्तानन्त द्रव्य हैं। इसका समाधान शास्त्राधार से हुआ, इसका हमें अतीव आनन्द है; तथापि आपने छह द्रव्यों की संख्या जो भिन्न-भिन्न रूप से बताई है, तत्सम्बन्धी शास्त्राधार जानने की जिज्ञासा मन में उत्पन्न हुई है, उसका भी हम उत्तर चाहते हैं। शास्त्राधार के बिना विषय मन को स्वीकार नहीं होता, क्या करें? उत्तर - आपको शास्त्राधार की अपेक्षा रहती है, इसमें कुछ भी गलत नहीं है। शास्त्र, केवलज्ञानी भगवान के उपदेशानुसार रहते हैं। सर्वज्ञ भगवान तो जिनधर्म के प्राण हैं। हम भी आपको शास्त्राधार बताने में उत्साहित हैं, अतः आप कुछ चिन्ता नहीं करें। हमने जीवादि द्रव्यों की संख्या गोम्मटसार जीवकाण्ड, गाथा ५८८ के आधार से लिखी है, इसके रचयिता आचार्य नेमिचन्द्र द्वारा रचित गाथा इसप्रकार हैं - जीवा अणंतसंखा, णंतगुणा पुग्गला हु तत्तो दु। धम्मतियं एक्के क्क, लोगपदेसप्पमा कालो || अर्थात् जीवद्रव्य अनन्त हैं, उससे अनन्तगुने पुद्गलद्रव्य हैं। धर्म, अधर्म, आकाश - ये एक-एक द्रव्य हैं और अखण्ड हैं तथा लोकाकाश के जितने प्रदेश हैं, उतने ही कालद्रव्य हैं। लोकाकाश के प्रदेश असंख्यात हैं और प्रत्येक प्रदेश पर एक-एक कालाणु स्थित है; इसलिए कालद्रव्य असंख्यात हैं - यह विषय स्पष्ट है। इस विषय को नेमीचन्द्र सिद्धान्तदेव ने द्रव्यसंग्रह की गाथा २२ में भी कहा है। १८. प्रश्न - विश्व में जीवादि छह द्रव्य किस प्रकार रहते हैं? उत्तर - विश्व में जीवादि छह द्रव्य दूध और पानी की तरह एकक्षेत्रावगाही होकर रहते हैं; तथापि वे अपने-अपने स्वभाव को नहीं छोड़ते; इसलिए जीवादि अनन्तानन्त सभी द्रव्य स्वतन्त्र ही हैं। उनके विश्व-विवेचन रहने का क्षेत्र/स्थान/आकाश एक है; इसलिए इन द्रव्यों का अपना स्वभाव बदल कर, सब द्रव्यों का स्वभाव एक हो गया - ऐसा नहीं है। ___एकक्षेत्रावगाह सम्बन्ध को समझने के लिए दूध-पानी के दृष्टान्त से भी स्पष्ट समझ में आ जाता है। जैसे, दो लीटर दूध में दो लीटर पानी डालो अथवा दस लीटर पानी डालो - दूध-दूध ही रहता है और पानी, पानी ही; फिर भी उनमें एकक्षेत्रावगाह सम्बन्ध रहता है। कभी ऐसा नहीं होता की तपेली में पहले से दो लीटर दूध था, बाद में दो लीटर पानी डाला तो दूध-दूध नीचे और पानी-पानी ऊपर ही रहा अथवा तपेली में पहले से एक लीटर पानी था, हमने उस तपेली में दो लीटर दूध डाला तो पानी-पानी नीचे और दूध ऊपर रहा - ऐसा कभी नहीं होता। ___यदि दस लीटर दूध में एक ही पाव पानी डालेंगे तो भी वह पानी सम्पूर्ण दूध में एकक्षेत्रावगाहीरूप से व्याप्त हो जाता है। 'एकक्षेत्रावगाह' शब्द का स्पष्ट अर्थ है - एक ही स्थान में व्याप्त होकर रहना। जैसे, जहाँ-जहाँ दूध है, वहाँ-वहाँ पानी है और जहाँ-जहाँ पानी है, वहाँवहाँ दूध है। दोनों का पृथक् अस्तित्व दिखाई नहीं देता है। अतः इस प्रसंग पर हमें यह विचार करना है कि दोनों एक ही बर्तन में एक साथ एकक्षेत्रावगाही होकर मिल जाने पर भी क्या वे वास्तव में एक हो गये हैं? परस्पर मिलने पर भी वे अपने-अपने स्वभाव/स्वरूप तथा लक्षण से अभिन्न और परस्पर भिन्न-भिन्न ही हैं। यदि वे भिन्न नहीं होते तो उसी दूध से मावा बनाते समय पानी सर्वथा निकल कैसे जाता है? इसका अर्थ यह हुआ कि जब दूध और पानी एक बर्तन में मिले हुए दिखाई देते थे, उस समय भी दोनों नियम से भिन्न-भिन्न ही थे तथा वे भिन्न-भिन्न थे, तभी तो वे विधिपूर्वक एक-दूसरे से भिन्न हो गए। यदि वे स्वरूपतः पहले से ही भिन्न-भिन्न नहीं होते तो कभी भी भिन्न नहीं हो सकते थे। (17)
SR No.009455
Book TitleJin Dharm Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain, Rakesh Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages105
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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