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________________ २०२ जिनधर्म-विवेचन प्रत्येक द्रव्य में एक शक्ति ऐसी है, जिसके कारण वर्तमान पर्याय का नियम से आगामी समय में अभाव हो जाता है; वह शक्ति है भावाअभावशक्ति। तथा एक शक्ति ऐसी भी होती है कि जिसके कारण आगामी समय में होनेवाली पर्याय उस समय नियम से उत्पन्न होती ही है; इस शक्ति का नाम है अभाव-भावशक्ति। प्रत्येक द्रव्य में एक शक्ति ऐसी है कि जो पर्याय जिस समय होनी होती है, वह पर्याय उस समय नियम से होती ही है। वह शक्ति है भावाभावशक्तिः। तथा एक शक्ति ऐसी भी होती है कि जिसके कारण जो पर्याय जिस समय नहीं होनी है, वह नियम से नहीं ही होती है; उस शक्ति का नाम है अभाव-अभावशक्ति। २५४. प्रश्न - व्यय किसे कहते हैं? उतर - द्रव्य की पूर्वपर्याय के नाश को व्यय कहते हैं। जैसे - सुवर्णरूप पुदगलद्रव्य की हाररूप पर्याय है: उस हार पर्याय को मिटाकर. स्वर्णकार ने अँगूठी आदि बना दी तो हार पर्याय का व्यय हो गया। २५५. प्रश्न - क्या दूध का दही बनने से दूधरूप पर्याय का व्यय होता है अथवा दहीरूप पर्याय के उत्पाद से दूध की पर्याय का व्यय होता है? स्पष्ट कीजिए। उतर - दूध की व्ययरूप पर्यायशक्ति से दूध का व्यय हुआ है, न कि दहीरूप पर्याय के उत्पाद से । दूध की दहीरूप नवीन पर्याय तो उत्पादशक्ति से होती है, जबकि पूर्व पर्याय का नाश, व्ययशक्ति से होता है। यह उत्पाद और व्यय की अपनी-अपनी स्वतन्त्रता है। २५६. प्रश्न - नवीन पर्याय का उत्पाद और पूर्व पर्याय का व्यय, इन दोनों में पहले कौन और पश्चात् कौन? स्पष्ट कीजिए। १. भवत्पर्यायव्ययरूपा भावाभावशक्तिः - समयसार, आत्मख्याति टीका, परिशिष्ट २. भवत्पर्यायभवनरूपा अभावभावशक्तिः - वही ३. भवत्पर्यायभवनरूपा भावभावशक्तिः - वही ४. अभवत्पर्यायाभवनरूपा अभावाभावशक्तिः - वही पर्याय-विवेचन २०३ उतर - पहले और पश्चात् का प्रश्न ही नहीं है, दोनों एक साथ एक ही समय में होते हैं। जिस समय नवीन पर्याय का उत्पाद होता है, उसी समय पूर्व पर्याय का व्यय होता है। जिस समय हार की पर्याय का उत्पाद हुआ, उसी समय मुकुटरूप पर्याय का व्यय हुआ। उत्पाद-व्यय, दोनों एक समय में ही होते हैं, पर होते हैं अपने-अपने स्वतन्त्र कारण से। ___ सर्वज्ञ जिनेन्द्र भगवन्तों द्वारा प्रतिपादित वस्तु-व्यवस्था के अनुसार विश्व, द्रव्य और उसके गुण - ये तीनों तो अनादि-अनन्त हैं, स्वतःसिद्ध हैं और स्वतन्त्र है। विश्व, द्रव्य और उसके गुण स्वयम्भू होने से इनकी सत्ता के लिए कोई निमित्त भी नहीं होता हैं; क्योंकि अनादि वस्तु के लिए निमित्त नहीं होता। यदि इनके लिए भी निमित्त मान लिया जाए तो इनका अनादिपना नहीं रहता; लेकिन पर्याय सादि-सान्त होने पर भी स्वतःसिद्ध और स्वतन्त्र होती है - यह परम आश्चर्य है। हाँ, पर्याय में निमित्त का स्वीकार अवश्य रहता है। २५७. प्रश्न - उत्पाद-व्यय, दोनों एक ही समय में होते हैं तो ध्रौव्य कब और कैसे घटित होता है? ___ उतर - अरे भाई! उत्पाद-व्यय और ध्रौव्य - ये तीनों एक ही समय में होते हैं। हम द्रव्य को जिस दृष्टिकोण से देखते हैं, वह हमें उसी रूप में दिखाई देता है। इसलिए उत्पाद आदि तीनों को सत् अथवा सत्ता भी कहते हैं। ___इस विषय की विस्तृत जानकारी के लिए तत्त्वार्थसूत्र का अध्याय ५ एवं प्रवचनसार का ज्ञेयाधिकार जरूर देखें। जैसे - भगवान महावीर का जीव, सोलहवें स्वर्ग से च्युत होकर माँ त्रिशला के गर्भ में आया; वहाँ देवपर्याय का व्यय और मनुष्यपर्याय का उत्पाद, एक साथ अर्थात् एक ही समय में हुए । देव और मनुष्य पर्यायों में जीवपना अखण्डरूप से ध्रौव्य ही रहा। इस प्रकार हम एक जीव में एक ही समय में उत्पाद-व्यय और ध्रौव्य को अच्छी तरह समझ सकते हैं। (102)
SR No.009455
Book TitleJin Dharm Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain, Rakesh Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages105
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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