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________________ 360 प्रकरण दसवाँ कर्म के आश्रय से न परिणमित होनेरूप जीव का भाव लिया जाये तो वह क्षणिक उपादान है। प्रश्न 3 - काललब्धि पकेगी तभी धर्म होगा - यह मान्यता सत्य है? उत्तर - यह मान्यता मिथ्या है, क्योंकि ऐसा माननेवाले जीव ने अपने ज्ञायकस्वभाव, पुरुषार्थ आदि पाँच समवायों को एक ही साथ नहीं माना परन्तु एकमात्र काल को ही माना; इसलिए उस मान्यतावाले को एकान्त कालवादी गृहीतमिथ्यादृष्टि कहा है। (गोम्मटसार कर्मकाण्ड, गाथा 879) प्रश्न 4 - जगत् में सब भवितव्य (नियति) के आधीन है; इसलिए जब धर्म होना होगा तब होगा; - यह मान्यता सत्य है ? उत्तर - नहीं, क्योंकि ऐसा माननेवाले जीव ने अपना ज्ञायकस्वभाव, पुरुषार्थ आदि पाँच समवायों को एक ही साथ नहीं माना, किन्तु अकेले भवितव्य को ही माना; इसलिए वैसी मान्यतावाले को शास्त्र में एकान्त नियतिवादी गृहीतमिथ्यादृष्टि कहा है। (गोम्मटसार कर्मकाण्ड, गाथा 882) प्रश्न 5 - पाँचों समवाय में द्रव्य-गुण-पर्याय कौन-कौन हैं? उत्तर - सामान्य ज्ञायकस्वभाव, वह द्रव्य और शेष चार पर्याय हैं। प्रश्न 6 - जहाँ तक दर्शनमोहकर्म मार्ग न दे, वहाँ तक सम्यग्दर्शन नहीं होता – यह मान्यता सत्य है ? उत्तर - नहीं; यह मान्यता मिथ्या है क्योंकि उस जीव ने पुरुषार्थ द्वारा ज्ञायकस्वभावी आत्मा के सन्मुख होकर एक साथ
SR No.009453
Book TitleJain Siddhant Prashnottara Mala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendra Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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