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________________ श्री जैन सिद्धान्त प्रश्नोत्तरमाला उत्तर - वह कोई वस्तु नहीं, किन्तु जिस काल में कार्य बने वही कालब्धि है । (मोक्षमार्गप्रकाशक, पृष्ठ 307 ) 359 प्रश्न 3 - काललब्धि किस द्रव्य में होती है ? उत्तर - छहों द्रव्यों में प्रत्येक समय होती है । उस सम्बन्ध में श्री कार्तिकेयानुप्रेक्षा गाथा 219 में कहा है कि - कालाइलद्धिजुत्ता णाणसत्तीहि संजुदा जत्था । परिणममाण हि सयं ण सक्कदे को वि वारेदुं ॥ 219 ।। अर्थात् सर्व पदार्थ कालादि लब्धिसहित, अनेक प्रकार की शक्तिसहित हैं और स्वयं परिणमन करते हैं, उन्हें उस प्रकार परिणमन करते हुए रोकने में कोई समर्थ नहीं है। भावार्थ - :- समस्त द्रव्य अपने-अपने परिणामरूप द्रव्य, क्षेत्र, काल सामग्री को प्राप्त करके स्वयं ही भावरूप परिणमित होते हैं; उन्हें कोई रोकने में समर्थ नहीं है। (1) यहाँ कालादि लब्धि में काललब्धि का अर्थ स्वकाल की प्राप्ति होता है; (2) द्रव्यस्वभाव के सन्मुख हुआ वर्तमान पुरुषार्थ, वह क्षणिक उपादान है; (3) (पर) काललब्धि, वह निमित्त है और यदि स्वकाललब्धि मानी जाये तो वह क्षणिक उपादान है; (4) भवितव्य अथवा नियति उस-उस समय की योग्यता है, वह भी क्षणिक उपादान है; (5) कर्म, वह द्रव्यकर्म की अवस्था निमित्त है और यदि
SR No.009453
Book TitleJain Siddhant Prashnottara Mala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendra Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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