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________________ श्री जैन सिद्धान्त प्रश्नोत्तरमाला 239 उपादान - निमित्त की स्वतन्त्रता उपादान है; निमित्त है; दोनों का अस्तित्व होते हुए भी दोनों स्वतन्त्र हैं, अपना-अपना कार्य स्वयं करते हैं - यह बात इस प्रवचन में अनेक उदाहरणों के द्वारा समझायी है। उपादान - निमित्त उपादान किसे कहना चाहिए और निमित्त किसे कहना चाहिए ? आत्मा की शक्ति को उपादान कहते हैं और पर्याय की वर्तमान योग्यता को भी उपादान कहते हैं। जिस अवस्था में कार्य होता है, उस समय की वह अवस्था स्वयं ही उपादानकारण है; और उस समय उसे अनुकूल परद्रव्य, निमित्त है। निमित्त के कारण उपादान में कुछ नहीं होता । यहाँ उपादान - निमित्त सम्बन्धी विविध प्रकार की मिथ्यामान्यताओं को दूर करने के लिए अनेक दृष्टान्तों के द्वारा उपादान - निमित्त की स्वतन्त्रता का सिद्धान्त समझाया जा रहा है। गुरु के निमित्त से ज्ञान नहीं होता आत्मा में जो ज्ञान होता है, वह ज्ञान आत्मा की पर्याय की शक्ति से होता है या शास्त्र के निमित्त से होता है ? आत्मा की पर्याय की योग्यता से ही ज्ञान होता है, निमित्त से ज्ञान नहीं होता। जिस समय आत्मा की पर्याय में पुरुषार्थ के द्वारा सम्यग्ज्ञान प्रगट करने की योग्यता होती है और आत्मा, सम्यग्ज्ञान
SR No.009453
Book TitleJain Siddhant Prashnottara Mala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendra Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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