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________________ श्री जैन सिद्धान्त प्रश्नोत्तरमाला कारण उसे जितना राग है, उतना दुःख होता है । सुई के कारण ज्ञानी या अज्ञानी किसी को दुःख नहीं होता । ज्ञानी, दुःखरूप विकार का ज्ञाता ही है, किन्तु उसका स्वामी नहीं है । अज्ञानी, पर के साथ एकत्वबुद्धि करके विकार का स्वामी बनकर दुःखी होता है । 175 3. ... सामग्री के आधीन सुख-दुःख नहीं है, किन्तु साता - असाता का उदय होने पर मोह परिणामों के निमित्त से ही सुख - दुःख मानते हैं।... . मुनिराज, शारीरिक पीड़ा होने पर भी उसमें कोई दुःख नहीं मानते, इसलिए सुख-दुःख मानना मोह के आधीन है। मोहनीय और वेदनीय का निमित्त - नैमित्तिक सम्बन्ध है, इसलिए साताअसाता के उदय से सुख - दुःख का होना भासित होता है। .. केवली भगवान के साता-असाता का उदय होने पर सुखदुःख के कारण सामग्री का भी संयोग है, परन्तु मोह के अभाव से उन्हें किञ्चित्मात्र भी सुख-दुःख नहीं होता; इसलिए सुख-दुःख को मोहजनित ही मानना । इसलिए तू सामग्री को ( निमित्त को) दूर करने तथा स्थायी रखने के उपाय करके दुःख मिटाना और सुखी होना चाहता है, किन्तु वे भी सभी उपाय झूठे हैं; तो फिर सच्चा उपाय क्या है ? सम्यग्दर्शनादिक से भ्रम दूर हो जाए तो सामग्री से सुख-दुःख भासित न होकर अपने परिणाम से ही सुख - दुःख भासित हो... ( मोक्षमार्गप्रकाशक गुजराती आवृत्ति, पृष्ठ 87 ) प्रश्न 34 - निमित्त प्राप्त करके उपादान परिणमित होता है इस कथन का क्या अर्थ ? उत्तर- (1) जो गुणों को और पर्यायों को पाते - प्राप्त करते
SR No.009453
Book TitleJain Siddhant Prashnottara Mala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendra Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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