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________________ गुणस्थान-प्रकरण क्षीणमोह स्फटिकमणि के पात्र में रखे हुए निर्मल जल के समान संपूर्ण कषायों के क्षय के समय होनेवाले जीव के अत्यन्त निर्मल वीतरागी परिणामों को क्षीणमोह गुणस्थान कहते हैं। जिस छद्यस्थ के, वीतरागता के विरोधी मोहनीय कर्म के द्रव्य एवं भाव दोनों ही प्रकारों का अथवा प्रकृति, स्थिति, अनुभाग और प्रदेशरूप चारों ही भेदों का सर्वथा बंध, उदय, उदीरणा एवं सत्त्व की अपेक्षा क्षय हो जाता है; वह बारहवें गुणस्थानवाला माना जाता है। इसलिए आगम में इसका नाम क्षीणकषाय वीतराग छद्मस्थ ऐसा बताया है। यहाँ छद्मस्थ शब्द अन्तदीपक है। और वीतराग शब्द नाम, स्थापना और द्रव्यरूप वीतरागता की निवृत्ति के लिए है। तथा यहाँ पर पाँच भावों में से मोहनीय के सर्वथा अभाव की अपेक्षा से एक क्षायिक भाव ही माना गया है। विशेषता - १. मात्र साता वेदनीय का ईर्यापथास्रव ही होता है। २. इसके अंतिम समय में तीन घातिया कर्मों का क्षय होता है। ३. चतुर्थ गुणस्थान से यहाँ तक सभी जीव “अन्तरात्मा” संज्ञक हैं। ४. "क्षीणमोह" शब्द आदि दीपक हैं। यहाँ से उपरिम सभी जीव क्षीणमोही ही हैं। जैसे क्षीणमोही सयोगकेवली आदि। सयोगकेवली सयोगकेवली घाति चतुष्क के क्षय के काल में औदयिक अज्ञान नाशक तथा असहाय केवलज्ञानादि नव लब्धिसहित होने पर परमात्मा संज्ञा को प्राप्त जीव की योगसहित वीतराग दशा को सयोगकेवली गुणस्थान कहते हैं। जिन के दो भेद हैं - सयोग और अयोग । गोम्मटसार गाथा नं. ६४ में सयोग का और आगे की गाथा नं.६५ में अयोग जिन का विशेष स्वरूप बताया गया है। एकत्ववितर्क शुक्लध्यान के प्रभाव से तेरहवें गुणस्थान के पहले ही समय में छद्मस्थता का व्यय और केवलित्व-सर्वज्ञता का उत्पाद एक साथ ही हो जाया करता है। क्योंकि वस्तु का स्वभाव ही उत्पाद, व्यय, ध्रौव्यात्मक है। यहाँ पर "सयोग" यह जिन का विशेषण है और वह अन्त दीपक है। विशेषता-१.यहाँ से"परमात्मा" संज्ञा प्रारंभ होती है। २. सम्यक्त्व के आज्ञा आदि दस भेदों में से यहाँ परमावगढ़ सम्यक्त्व होता है। क्षायिक सम्यक्त्व को ही केवलज्ञान के सद्भाव से परमावगाढ सम्यक्त्व कहते हैं। ३.यहाँ "सयोग" शब्द अन्त-दीपक है। यहाँ पर्यंत के सभी जीव योग सहित हैं। जैसे - सयोग मिथ्यात्व, सयोग सासादनसम्यक्त्व आदि। ४. "केवली" शब्द आदि-दीपक है। सर्वज्ञता यहाँ प्रगट होती है और सिद्धावस्था में अनन्तकाल तक रहती है। (१३ सयोग केवली में) (१४ अयोगकेवली में || ऊपर से आगमन नहीं | ऊपर से आगमन नहीं सयोगकेवली सेगमन सयोगकेवली में आगमन क्षीणमोह से गमन क्षीणमोह में आगमन क्षा नीचे गमन नहीं १०क्षपक सूक्ष्मसाम्पराय से नीचे गमन नहीं 31 १२क्षीणमोह
SR No.009451
Book TitleGunsthan Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchand Shastri, Yashpal Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2014
Total Pages34
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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