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________________ ५६ गुणस्थान-प्रकरण अनिवृत्तिकरण अपूर्वकरण अधःप्रवत्तकरण संबंधी अंतर्मुहर्त काल पर्ण कर प्रति समय अनंतगणी शुद्धि को प्राप्त हुए परिणामों को अपूर्वकरण गुणस्थान कहते हैं। इसमें अनुकृष्टि रचना नहीं होती। यहाँ पर (अपूर्वकरण में) भिन्नसमयवर्ती जीवों में विशुद्ध परिणामों की अपेक्षा कभी भी सादृश्य नहीं पाया जाता; किन्तु एकसमयवर्ती जीवों में सादृश्य और वैसादृश्य दोनों ही पाये जाते हैं। इस गुणस्थान का काल अन्तर्मुहर्त्तमात्र है और इसमें परिणाम असंख्यात लोक प्रमाण होते हैं और वे परिणाम उत्तरोत्तर प्रतिसमय समानवृद्धि को लिये हुए हैं। इस गुणस्थान में चार आवश्यक कार्य हुआ करते हैं। (१) गुणश्रेणी निर्जरा (२) गुणसंक्रमण (३) स्थितिखण्डन (४) अनुभागखण्डन । ये चारों ही कार्य पूर्वबद्ध कर्मों में हुआ करते हैं। इनमें अनुभागखण्डन पूर्वबद्ध सत्तारूप अप्रशस्त प्रकृतियों के अनुभाग का हुआ करता है। क्योंकि इनके बिना चारित्रमोह की २१ प्रकृतियों का उपशम या क्षय नहीं हो सकता। अतएव अपूर्व परिणामों के द्वारा इन कार्यों को करके उपशम-क्षपण के लिये यहीं से वह उद्यत हो जाया करता है। ९ अनिवृत्तिकरण में |९ उपशमक अनिवृत्तिकरण से उपशमकक्षपक अनिवृत्तिकरण अत्यन्त निर्मल ध्यानरूपी अग्नि शिखाओं के द्वारा, कर्म-वन को दग्ध करने में समर्थ, प्रत्येक समय के एक-एक सुनिश्चित वृद्धिंगत वीतराग परिणामों को अनिवृत्तिकरण गुणस्थान कहते हैं। ____ यहाँ पर एक समयवर्ती नाना जीवों के परिणामों में पाई जानेवाली विशुद्धि में परस्पर निवृत्ति-भेद नहीं पाया जाता, अतएव इन परिणामों को अनिवृत्तिकरण कहते हैं। अनिवृत्तिकरण का जितना काल है उतने ही उसके परिणाम हैं। इसलिये प्रत्येक समय में एक ही परिणाम होता है। यही कारण है कि यहाँ पर भिन्नसमयवर्ती जीवों के परिणामों में सर्वथा विसदृशता और एक समयवर्ती जीवों के परिणामों में सर्वथा सदृशता ही पाई जाती है। इन परिणामों से ही आयुकर्म को छोड़कर शेष सात कर्मों की गुणश्रेणि निर्जरा, गुणसंक्रमण, स्थितिखण्डन, अनुभागखण्डन होता है और मोहनीय कर्म की बादरकृष्टि सूक्ष्मकृष्टि आदि हुआ करती है। ( १० सूक्ष्मसाम्पराय में ) उपशमक क्षपक १० उपशमक सूक्ष्मसाम्पराय से अपूर्वकरण से गमन | अपूर्वकरण में आगमन अनिवृत्तिकरणसे गमन |अनिवृत्तिकरण में आगमन R IIIIIII AN यदि मरण हो यदि उपशमक अनिवृत्तिकरणवाले हो तो नीचे गमन यदि मरण हो जाये तो जाये तो यदि मरण हो जाये तो यदि उपशमक अनिवृत्तिकरणवाले हो तो नीचे गमन | ७ सातिशय अप्रमत्त से ८ अपूर्वकरण से ७ सातिशय अप्रमत्त में अविरत सम्यक्त्व ८ अपूर्वकरण में अविरत सम्यक्त्व में || अविरत सम्यक्त्व में |
SR No.009451
Book TitleGunsthan Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchand Shastri, Yashpal Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2014
Total Pages34
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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