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________________ सम्यग्मिथ्यादृष्टि सूत्र - सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीव कितने काल तक होते हैं? नाना जीवों की अपेक्षा जघन्य से अन्तर्मुहूर्त तक होते हैं। ॥ सम्यग्मिथ्यात्व में आगमन - इस सूत्र का अर्थ कहते हैं - मोहकर्म की अट्ठाईस प्रकृतियों की सत्ता रखनवाले १. मिथ्यादृष्टि, अथवा २. वेदकसम्यक्त्वसहित असंयतसम्यग्दृष्टि, ३. संयतासंयत तथा ४. प्रमत्तसंयत गुणस्थानवाले सात आठ जन अथवा आवली के असंख्यातवें भागमात्र जीव अथवा पल्योपम के असंख्यातवें भागमात्र जीव परिणामों के निमित्त से सम्यग्मिथ्यात्वगुणस्थान को प्राप्त हुए। सम्यग्मिथ्यात्व से गमन एवं काल - वहाँ पर सबसे कम अन्तर्मुहूर्त-कालप्रमाण रह करके १. मिथ्यात्व को अथवा २. असंयम के साथ सम्यक्त्व को प्राप्त हुए। तब सम्यग्मिथ्यात्व नष्ट हो गया। इसप्रकार सम्यग्मिथ्यात्व का अन्तर्मुहूर्तप्रमाण काल सिद्ध हुआ। ३२. शंका - यहाँ पर अप्रमत्तसंयत जीव, सम्यग्मिथ्यात्वगुणस्थान को क्यों नहीं प्राप्त कराया? समाधान - नहीं; क्योंकि, यदि अप्रमत्तसंयत जीव के संक्लेश की वृद्धि हो तो प्रमत्तसंयतगुणस्थान को, और यदि विशुद्धि की वृद्धि हो, तो अपूर्वकरण गुणस्थान को छोड़कर दूसरे गुणस्थान में गमन का अभाव है। यदि अप्रमत्तसंयत जीव का मरण भी हो तो असंयतसम्यगदृष्टि गुणस्थान को छोड़कर दूसरे गुणस्थानों में गमन नहीं होता। षट्खण्डागम सूत्र ९,१०,११ ३३. शंका - सम्यग्मिथ्यात्वदृष्टि जीव अपना काल पूरा कर पीछे संयम को अथवा संयमासंयम को क्यों नहीं प्राप्त कराया गया? समाधान - नहीं; क्योंकि, उस सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीव का मिथ्यात्व सहित मिथ्यादृष्टि गुणस्थान को अथवा सम्यक्त्व सहित असंयत गुणस्थान को छोड़कर दूसरे गुणस्थानों में गमन का अभाव है। ३४. शंका - अन्य गुणस्थानों में नहीं जाने का क्या कारण है? समाधान - ऐसा स्वभाव ही है। और स्वभाव दूसरे के प्रश्न योग्य नहीं हुआ करता है, क्योंकि उसमें विरोध आता है। सत्र - नाना जीवों की अपेक्षा सम्यग्मिथ्याटष्टि जीवों का उत्कृष्टकाल पल्योपम के असंख्यातवें भागप्रमाण हैं।।१०।। इस सूत्र का अर्थ कहते हैं - पूर्वोक्त गुणस्थानवी जीव सम्यग्मिथ्यात्व को प्राप्त होकर और वहाँ पर अन्तर्मुहूर्त काल तक रहकर जबतक वे मिथ्यात्व को अथवा असंयमसहित सम्यक्त्व को नहीं प्राप्त होते हैं, जबतक अन्य अन्य भी पूर्वोक्त गुणस्थानवर्ती ही जीव सम्यग्मिथ्यात्व को प्राप्त कराते जाना चाहिए, जबतक कि सर्वोत्कृष्ट नाना जीवों की अपेक्षा रखनेवाला पल्योपम का असंख्यातवाँ भागमात्र काल पूरा हो। वह काल अपने गुणस्थानवर्ती जीवराशि से असंख्यातगुणा होता है। इसका भी कारण पूर्व के समान ही (स्वभाव) कहना चाहिए। उसके पश्चात् नियम से अन्तर हो जाता है। सूत्र - एक जीव की अपेक्षा सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीव का जघन्यकाल अन्तर्मुहूर्त है।199॥ इस सूत्र का अर्थ कहते हैं - एक मिथ्यादृष्टि जीव विशुद्ध होता हुआ सम्यग्मिथ्यात्व को प्राप्त हुआ। पुनः सर्वलघु अन्तर्मुहूर्तकाल रह कर विशुद्ध होता हुआ ही असंयमसहित सम्यक्त्व को प्राप्त हुआ। ३५. शंका - संक्लेश को पूरित करके, अर्थात् संक्लेशपरिणामी होकर, सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीव मिथ्यात्व को क्यों नहीं प्राप्त हुआ? 18
SR No.009451
Book TitleGunsthan Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchand Shastri, Yashpal Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2014
Total Pages34
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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