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________________ गुणस्थान-प्रकरण सासादन सम्यक्त्व असंख्यातप्रमाण राशि के व्यय होने पर भी अनन्तकाल से भी नहीं समाप्त होता है। कहा भी है - गाथार्थ - व्यय के होते रहने पर भी अनन्त काल के द्वारा भी जो राशि समाप्त नहीं होती है, उसे महर्षियों ने 'अनन्त' इस नाम से विनिर्दिष्ट किया है।॥३०॥ २८. शंका - यदि ऐसा है, तो व्ययसहित अर्द्धपुद्गलपरिवर्तन आदि राशियों का अनन्तत्व नष्ट हो जाता है? समाधान - उनका अनन्तपना नष्ट हो जाय, इसमें क्या दोष है? २९. शंका - किन्तु उन अर्द्धपुद्गलपरिवर्तन आदि को में अनन्त का व्यवहार सूत्र तथा आचार्यों के व्याख्यान से प्रसिद्ध हुआ पाया जाता है? समाधान - नहीं, क्योंकि उन पुद्गलपरिवर्तन आदि में अनन्तत्व का व्यवहार उपचार निबन्धनक है। अब इसी उपचारनिबन्धनता को स्पष्ट करते हैं - ___जो पाषाणादि का स्तम्भ प्रत्यक्ष प्रमाण के द्वारा उपलब्ध है, वह जिसप्रकार उपचार से 'प्रत्यक्ष हैं' ऐसा लोक में कहा जाता है, उसी प्रकार से अवधिज्ञान के विषय का उल्लंघन करके जो राशियाँ स्थित हैं, वे सब अनन्त प्रमाणवाले केवलज्ञान के विषय हैं, इसलिए उपचार से 'अनन्त हैं' इसप्रकार से कही जाती हैं। अतएव सूत्र और आचार्यों के व्याख्यान से प्रसिद्ध अनन्त के व्यवहार से यह व्याख्यान विरोध को प्राप्त नहीं होता है। अथवा, व्यय के होते रहने पर भी सदा अक्षय रहनेवाली कोई राशि है जो कि क्षय होनेवाली सभी राशियों के प्रतिपक्ष सहित पाई जाती है। इसीप्रकार यह भव्यराशि भी अनन्त है, इसलिए व्यय के होते रहने पर भी अनन्तकाल द्वारा भी यह नहीं समाप्त होगी, यह बात सिद्ध हुई। सूत्र-सासादनसम्यग्दृष्टि जीव कितने काल तक होते हैं? नाना जीवों की अपेक्षा जघन्य से एक समय तक होते हैं।॥५॥ इस सूत्र का अवयवार्थ पहले कहा जा चुका है, इसलिए पुनरुक्त दोष के भय से यहाँ पर नहीं कहते हैं। अब यहाँ पर एक समय की प्ररूपणा की जाती है। वह इस प्रकार से है - दो अथवा तीन, इसप्रकार एक अधिक वृद्धि से बढ़ते हुए पल्योपम के असंख्यातवें भागमात्र उपशमसम्यग्दृष्टि जीव उपशमसम्यक्त्व के काल में एक समय मात्र काल अवशिष्ट रह जाने पर एक साथ सासादन गुणस्थान को प्राप्त हुए, एक समय में दिखाई दिये। दूसरे समय में सबके सब मिथ्यात्व को प्राप्त हो गये। उस समय तीनों ही लोकों में सासादनसम्यग्दृष्टियों का अभाव हो गया। इसप्रकार एक समय प्रमाण सासादन गुणस्थान का नाना जीवों की अपेक्षा काल प्राप्त हुआ। सूत्र - सासादनसम्यग्दृष्टि जीवों का नाना जीवों की अपेक्षा उत्कृष्टकाल पल्योपम के असंख्यातवें भागप्रमाण है।।६।। दो, अथवा तीन, अथवा चार इसप्रकार एक-एक अधिक वृद्धि द्वारा पल्योपम के असंख्यातवें भाग मात्र तक उपशमसम्यग्दृष्टि जीव एक समय को आदि करके उत्कर्ष से छह आवलियाँ उपशमसम्यक्त्व का काल अवशिष्ट रहने पर सासादन गुणस्थान को प्राप्त हुए। वे जब तक मिथ्यात्व को प्राप्त नहीं होते हैं, तबतक अन्य भी उपशमसम्यग्दृष्टि जीव सासादन गुणस्थान को प्राप्त होते रहते हैं। ___16
SR No.009451
Book TitleGunsthan Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchand Shastri, Yashpal Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2014
Total Pages34
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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