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________________ गागर में सागर तबतक मुंह में पानी भी नहीं देता था, जबतक कि गाय की लाश न उठ जाय और एक जमाना यह है कि श्मशान में भी ठाठ से चाय चलती है। लोग शवयात्रा में भी उसी ठाठ-बाट से जाते हैं कि जिससे पता ही नहीं चलता है कि ये किसी की बरात में जा रहे हैं या शवयात्रा में । वंसी ही बातें, वैसी ही हँसी-मजाक; वही राजनैतिक चर्चायें; यदि क्रिकेट का मौसम चल रहा हो, तो बहुतों के हाथ में ट्रांजिस्टर भी मिल जावेगा, स्कोर तो सभी पूंछते ही हैं। न मालूम क्या हो गया है आज को इस दुनिया को? और की बात तो जाने दीजिए, सगे मां-बाप मरते हैं तो भी यह उन्हें तीन दिन से अधिक याद नहीं रख पाता । प्राज मरे और कल तीसरा दिन होता है। तीसरा दिन हरा नहीं कि किसान खेत पर चला जाता है, कहता है :बोनी का समय है; दुकानदार दुकान खोल लेता है, कहता है :- सीजन चल रहा है; नोकरीपेशा नौकरी पर चला जाता है, कहता है :आकस्मिक अवकाश (सी०एल०) बाकी नहीं है। जो मां-बाप जीवनभर पाप करके सम्पत्ति जोड़ते हैं, पाप की गठरी अपने माथे बांधकर ले जाते हैं और कमाई बच्चों को छोड़ जाते हैं; जब वे बच्चे ही उन्हें तीन दिन से अधिक याद नहीं रख पाते तो और की क्या बात कहें ? ऐसे संवेदनहीन बेदर्द जमाने में, जिसने २५१० वर्ष पहले देह छोड़ी हो और २५१० वर्ष बाद हम याद करें, प्रार्थना करें कि - ___'वे बर्द्धमान महान जिन विचरें हमारे ध्यान में ॥" क्या तुक है इसमें ? ऐसा क्या दिया था भगवान महावीर ने हमें, जो हम २५१० वर्ष वाद भी याद करें, उनके गीत गावें? भौतिकरूप से तो उन्होंने हमें कुछ भी नहीं दिया था। उनके पास था भी क्या, जो हमें देते ? वे नग्न-दिगम्बर थे, एक लंगोटी भी तो न थी उनके पास पर भाईसाहब ! भौतिकरूप से सब-कुछ देनेवालों को भी हम कहाँ याद रखते हैं ? अभी बताया था न कि जो मां-बाप हमें अपना सर्वस्व दे जाते हैं, हम उन्हें भी कितना याद रख पाते हैं ? पर हम महावीर को याद तो करते ही हैं, लाखों लोग उनसे ध्यान में विचरण करने की प्रार्थना तो करते ही हैं। ऐसा क्या दिया था उन्होंने हमें ?.
SR No.009449
Book TitleGagar me Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1998
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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