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________________ गाथा ५६ पर प्रवचन अरे, अपने आत्मा के अनुभव का काम जरा एक बार करके तो देख ! श्रानन्द मिलता है या नहीं ? यह कार्य ऐसा है कि अभी करो और अभी आनन्द पावो । इसका श्रानन्द पाने के लिए समय की प्रतीक्षा करने की आवश्यकता नहीं है । बुन्देलखण्ड में एक कहावत चलती है : ३६ सत्त ू, मनमत्त, कब घोले ? कब खाय ? धान, चट्ट कूटी, पटट खाई ॥ सत्तू एक ऐसा पदार्थ है कि जिसे गुड़ के साथ पानी में घं. लकर एक मिनट में खाया जा सकता है और धान तुष सहित चावल को कहते हैं । यदि हमारे पास धान हो और हम उसके चावल निकाल, भात पकाकर खाना चाहें तो कम से कम तीन दिन तो लगेंगे ही । पहले धान को दलना होगा, फिर कूटना होगा, फटकना होगा, धोना होगा, पकाना होगा; तब कहीं जाकर खाया जा सकता है । पर समझ की गलती से हम सत्तू के बारे में तो ऐसा कहते हैं कि उसे कब घोला जायगा और कब खाया जायगा । तथा धान के बारे में कहते हैं कि तत्काल कूट कर खा लो । इसीप्रकार जिन परपदार्थों का परिणमन हमारे हाथ में है ही नहीं, उनके कर्तृत्व को तो हमने सरल मान रखा है और सहज सरल अपने आत्मा के दर्शन को महा कठिन मान रखा है । हमारी यह मान्यता ही हमारे दुखों का मूल कारण है । इसी मान्यता के कारण यह तीन लोक का नाथ आज दर-दर का भिखारी बन रहा है । अरे ! छोड़ो इस मिथ्या मान्यता को और पहिचानो अपनी अचिन्त्य शक्ति को | यह मत समझो कि इस वर्तमान मलिन पर्याय में आत्मा का अनुभव होना असंभव है a जरा सोचो तो सही ! महा-अभिमानी इन्द्रभूति गौतम भगवान महावीर से शास्त्रार्थ करने आये थे, विरोधभाव लेकर आये थे; पर मानस्तंभ के दर्शन मात्र से उनका मान गल गया, भगवान के दर्शन मात्र से उनका मन शान्त हो गया, उपदेश सुनने की आवश्यकता ही नहीं रही ।
SR No.009449
Book TitleGagar me Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1998
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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