SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 33
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गागर में मागर अनन्त महिमावन्त भगवान प्रात्मा की महिमा से परिचित होने पर, उसके प्रति महिमावंत होने पर पर्याय में सहज ही पुरुषार्थ स्फुरायमान होगा, सहज ही भगवान आत्मा के दर्शन होंगे, सहज ही भगवान आत्मा का ज्ञान होगा और सहज ही भगवान आत्मा में लीनता होगी, अनन्त आनन्द की प्राप्ति होगी; होगी; अवश्य होगी; क्यों न होगी? क्योंकि मार्ग ही ऐसा है, मार्ग ही यही है । भगवान आत्मा के अतिरिक्त भगवान आत्मा की साधना का सर्वोत्तम अवसर होने के कारण मानवजीवन की भी हीरा से उपमा दी जाती रही है। कहा जाता रहा है कि : "होरा जनम गमायो रे मनवा ! होरा जनम गमायो।" हमने इस दुर्लभ मानवजीवनरूपी हीरे को प्राप्त कर इसकी कोई कीमत नहीं की, यों ही विषय-कपाय और मान-बढ़ाई में ही गमा दिया । अरे भाई ! इस दुर्लभ अवसर को पाकर भी यदि आत्मा का हित नहीं किया तो पीछे पछताना पड़ेगा । यह क्षणभंगुर जीवन समाप्त होने पर चार गति और चौरासी लाख योनियों में न मालूम कहाँ जाना पड़ेगा? अवसर हाथ से निकल जायेगा। यह अवसर खोना योग्य नहीं है । अतः हे आत्मन ! अनादिकालीन मिथ्या मान्यताओं को तोड़कर एकबार निज भगवान प्रात्मा की आराधना कर - इसमें ही सार है । प्रश्न :- अनादिकालीन मिथ्या मान्यता- मिथ्यात्व भाव इतनी जल्दी कैसे टूट सकता है ? उसे तोड़ना कोई आसान काम तो है नहीं ? उत्तर :- अरे भाई, क्यों नहीं टूट सकता ? जितना समय मकान बनाने में लगता है, टूटने में उतना नहीं। भाई ! ऐसा मत मानो कि मिथ्यात्व भाव टूटना असंभव है। मिथ्यात्व भाव के नाश करने में सबसे बड़ी वाधा यह मान्यता ही है। यह मान्यता ही मिथ्यात्व की संजीवनी है। यदि यह आत्मा ठान ले तो यह मिथ्यात्व एक क्षण में ही टूट सकता है। अनादि का मिथ्यात्व है हो कहाँ ? वह तो प्रतिक्षण उत्पन्न होता है और क्षण-क्षरण में स्वयं ही समाप्त भी हो जाता है । एक समय भी पुराना मिथ्यात्व आत्मा के साथ नहीं है। अनादि तो उसे संतति की अपेक्षा कहा जाता है, वास्तव में तो उसकी काल मर्यादा मात्र एक
SR No.009449
Book TitleGagar me Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1998
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy